
नई दिल्ली। भारत की सीमाओं पर बदलते सुरक्षा परिदृश्य और बढ़ते बहुआयामी खतरों के बीच भारतीय सेना ने एक अहम और रणनीतिक फैसला लिया है। सीमा पर निगरानी और चौकसी को और मजबूत करने के लिए सेना 20 नए टैक्टिकल रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट (आरपीए) खरीदने की योजना पर काम कर रही है। रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए भारतीय कंपनियों से जानकारी मांगते हुए आरएफआई जारी कर दिया है, जिससे साफ संकेत मिलते हैं कि आने वाले समय में सीमाओं की निगरानी पूरी तरह हाई-टेक होने जा रही है।
सूत्रों के अनुसार, प्रस्तावित 20 ड्रोन में से 10 ड्रोन मैदानी इलाकों के लिए और 10 ड्रोन ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किए जाएंगे। इनका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) और चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चौबीसों घंटे निगरानी को और सटीक व प्रभावी बनाना है। सेना चाहती है कि दुर्गम इलाकों, घुसपैठ संभावित क्षेत्रों और संवेदनशील सेक्टरों पर हर गतिविधि पर पैनी नजर रखी जा सके।
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का आकलन है कि मौजूदा समय में भारत को केवल पाकिस्तान और चीन से ही नहीं, बल्कि नेपाल और बांग्लादेश से लगती सीमाओं पर भी नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। खासतौर पर बांग्लादेश में उभर रही कट्टरपंथी ताकतों और वहां के कुछ चरमपंथी गुटों के पाकिस्तान से बढ़ते तालमेल ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। इसी कारण बीएसएफ और सेना दोनों ही सीमाओं पर अतिरिक्त सतर्कता बरत रही हैं।
भारत के इस एक्शन प्लान से पाकिस्तान में स्पष्ट रूप से खलबली मच गई है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सैन्य कार्रवाइयों से पहले ही डरे पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के अग्रिम क्षेत्रों में ड्रोन-रोधी तैनाती में भारी इजाफा कर दिया है। रावलकोट, कोटली और भीमबर सेक्टर में अलग-अलग आज़ाद कश्मीर ब्रिगेड्स को ड्रोन निगरानी और जवाबी कार्रवाई की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक और गतिज दोनों प्रकार की अमेरिकी ड्रोन-रोधी मिसाइल प्रणालियों को भी शामिल किया है। इनमें स्पाइडर काउंटर-यूएएस सिस्टम प्रमुख है, जो रेडियो-फ्रीक्वेंसी डिटेक्शन और दिशा-निर्धारण तकनीक के जरिए लगभग 10 किलोमीटर तक ड्रोन और लोइटरिंग मुनिशन्स का पता लगाने का दावा करता है। इसके अलावा, सफराह एंटी-यूएवी जैमिंग गन को भी तैनात किया गया है, जो कंधे से चलने वाली पोर्टेबल प्रणाली है और ड्रोन के नियंत्रण, वीडियो और जीपीएस लिंक को बाधित करने में सक्षम मानी जाती है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय सेना का यह कदम केवल निगरानी बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक स्पष्ट संदेश भी है कि भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर किसी भी स्तर पर समझौता नहीं करेगा। आधुनिक तकनीक, स्वदेशी रक्षा उपकरण और त्वरित निर्णय अब भारत की सैन्य रणनीति के मूल आधार बनते जा रहे हैं। आने वाले समय में इन ‘सुपर किलर’ ड्रोन की तैनाती से सीमाओं पर भारत की पकड़ और भी मजबूत होने की उम्मीद जताई जा रही है।






