
ऊधम सिंह नगर। तराई के शांत जंगलों में मंगलवार को एक गहरी खामोशी उतर आई। चार दिन पहले रेलगाड़ी से टकराकर घायल हुआ जंगल का रक्षक गजराज आखिरकार जिंदगी की जंग हार गया। तमाम प्रयासों और चिकित्सकीय सेवाओं के बावजूद उसका नर्व सिस्टम जवाब दे गया और मंगलवार दोपहर करीब 11:15 बजे उसने अंतिम सांस ली। शुक्रवार रात गूलरभोज–लालकुआं रेलवे ट्रैक पर निरीक्षण करती स्पेशल ट्रेन ओएमएस (ऑसिलेशन मॉनिटरिंग सिस्टम) से टकराकर गजराज गंभीर रूप से घायल हो गया था।
टक्कर के बाद वह पानी से भरे एक गढ्ढे में गिर पड़ा और करीब 15 घंटे तक वहीं पड़ा रहा। उसकी कराहें जंगल की हवा में गूंजती रहीं, पर कोई राहत नहीं आई। आखिर जेसीबी मशीन की मदद से उसे बाहर निकाला गया। उसके पैरों में गहरी चोटें थीं, एक दांत टूट चुका था और उसकी आंखों में दर्द और बेबसी साफ झलक रही थी। वन विभाग की टीम और मथुरा एसओएस वाइल्ड लाइफ के विशेषज्ञ चिकित्सक चार दिन तक लगातार उसकी सेवा में जुटे रहे।
उसे लेजर थेरेपी, इंजेक्शन और फ्लूड थेरेपी दी गई। हड्डी तो नहीं टूटी थी, पर नर्व सिस्टम पूरी तरह से निष्क्रिय हो गया था। उसका पिछला हिस्सा सुन्न हो चुका था और वह खाना भी नहीं खा पा रहा था। केवल पानी और दवाओं के सहारे जिंदगी की डोर किसी तरह टिकी हुई थी। मंगलवार को जब उम्मीद की वह डोर टूटी, तो पूरा वन क्षेत्र गमगीन हो उठा। डॉ. ललित और डॉ. राहुल सती ने पोस्टमार्टम किया और उसे उसी जंगल की गोद में दफनाया गया, जिसकी रक्षा उसने वर्षों तक की थी।
तराई की वही मिट्टी अब उसकी अंतिम शरणस्थली बन गई। चिकित्सकों के अनुसार गजराज की मौत का मुख्य कारण नर्व सिस्टम का डैमेज होना था। वन क्षेत्राधिकारी पीसी जोशी ने बताया कि हाथी के शरीर का पिछला हिस्सा पूरी तरह सुन्न हो गया था और मुंह में जख्म होने के कारण वह भोजन भी नहीं कर पा रहा था। डीएफओ यूसी तिवारी ने बताया कि इस हादसे में शामिल ट्रेन के लोको पायलट के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया जा चुका है और हाथी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाएगी। गूलरभोज के जंगलों में आज सिर्फ एक खामोशी बाकी है — उस पहरेदार की याद में, जो इंसानों की लापरवाही का शिकार बन गया।




