
देहरादून। बीड़ी पीने की लत अब केवल फेफड़ों या हृदय के लिए ही नहीं, बल्कि पैरों की रक्त धमनियों के लिए भी घातक साबित हो रही है। इसी से उत्पन्न एक दुर्लभ और खतरनाक बीमारी ‘बर्जर डिजीज’ का उपचार उत्तराखंड में पहली बार एक अनोखी और जटिल सर्जरी से किया गया है। डॉक्टरों ने मरीज की आंत की झिल्ली को टनल (सुरंग) के रास्ते पैरों में लगाकर रक्त संचार को फिर से शुरू करने का सफल प्रयास किया है। दून मेडिकल कॉलेज के सर्जन डॉक्टर अभय कुमार और उनकी टीम ने इस जटिल सर्जरी को अंजाम दिया। दावा किया गया है कि इस तरह की सर्जरी पूरे देश में पहली बार की गई है।
डॉ. अभय कुमार ने बताया कि इस प्रक्रिया को “लेप्रोस्कोपिक ओमेंटल फ्री ग्राफ्टिंग” नाम दिया गया है। इसमें मरीज के पेट को काटने के बजाय लेप्रोस्कोपी तकनीक की मदद से झिल्ली को अलग कर पैरों में बनी त्वचा के नीचे की टनल में लगाया गया। यह झिल्ली नई रक्त धमनियों का निर्माण करती है और कुछ ही दिनों में पैरों में फिर से रक्त संचार शुरू कर देती है। मरीज वर्तमान में पूरी तरह स्वस्थ बताया जा रहा है। इस सर्जरी को अंजाम देने वाली टीम में डॉक्टर दिव्यांशु, गुलशेर, मोनिका, वैभव, मयंक और अनूठी शामिल थे।
डॉक्टर अभय ने बताया कि जल्द ही इस नई चिकित्सा पद्धति को शोध के रूप में शामिल किया जाएगा ताकि इस बीमारी से पीड़ित अन्य मरीजों को भी राहत मिल सके। चिकित्सकों के अनुसार बर्जर डिजीज मुख्य रूप से बीड़ी पीने से होती है और यह केवल पुरुषों में ही देखी जा रही है, खासकर 50 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में। इस बीमारी में पैरों की रक्त धमनियों में सूजन आ जाती है, जिससे रक्त प्रवाह बंद हो जाता है। शुरूआती चरण में चलने पर पैरों में दर्द (क्लॉडिकेशन) होता है, फिर रेस्ट पेन और आखिर में गैंग्रीन और अल्सर बनने लगते हैं।
अब तक इसका कोई निश्चित क्लिनिकल इलाज उपलब्ध नहीं था और गंभीर मामलों में पैर काटना ही एकमात्र विकल्प रह जाता था। डॉ. अभय के अनुसार, आंत की झिल्ली में रक्त प्रवाह को पुनर्जीवित करने की क्षमता होती है। जब इसे पैरों में प्रत्यारोपित किया जाता है, तो यह नई धमनियों का निर्माण कर रक्त संचार को दोबारा सक्रिय कर देती है। यह प्रक्रिया चार से पांच दिनों में पूरी होती है और मरीज धीरे-धीरे सामान्य जीवन में लौट आता है। चिकित्सकों का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में बर्जर डिजीज के मामले सबसे ज्यादा मिलते हैं।
दून अस्पताल की सर्जरी ओपीडी में हर महीने करीब 20 मरीज इस बीमारी से पीड़ित आते हैं, जिनमें से अधिकांश पहाड़ी इलाकों से होते हैं। लंबे समय तक बीड़ी पीने से उसमें मौजूद निकोटीन धमनियों में जमा होकर सूजन पैदा करता है और धीरे-धीरे रक्त प्रवाह को अवरुद्ध कर देता है। चिकित्सकों ने लोगों से अपील की है कि बीड़ी या तंबाकू से पूरी तरह दूर रहें, क्योंकि यह धीरे-धीरे शरीर की महत्वपूर्ण धमनियों को नुकसान पहुंचाकर जीवन के लिए खतरा बन सकता है। इस नई तकनीक से इलाज एक आशा की किरण है, लेकिन सबसे बेहतर उपाय यही है कि लोग इस घातक आदत को त्याग दें।




