
रुद्रप्रयाग |हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड इन दिनों दिव्यता से आलोकित है। दीपावली पर्व की आहट के साथ ही बदरीनाथ और केदारनाथ धामों में दीपोत्सव की तैयारियों ने श्रद्धा और सौंदर्य का अनूठा संगम रच दिया है। सोमवार को दोनों धामों में दीपावली पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाएगी। जहां बदरीनाथ मंदिर को 12 क्विंटल गेंदे के फूलों और गुलाब की आकृतियों से सजाया गया है, वहीं केदारनाथ धाम में स्वर्ण छत्र और कलश उतारने की धार्मिक प्रक्रिया के बीच श्रद्धा का गहन वातावरण व्याप्त है।
गेंदे के फूलों से सजा बदरीनाथ धाम: रंग, सुगंध और भक्ति का संगम
बदरीनाथ मंदिर की शोभा इस बार कुछ और ही है। फूलों की सजावट ने मंदिर परिसर को स्वर्गिक आभा प्रदान की है। बीकेटीसी (बदरी-केदार मंदिर समिति) के अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी के अनुसार, मंदिर को लगभग 12 क्विंटल गेंदे के फूलों से सजाया गया है। साथ ही, गुलाब, रजनीगंधा और ऑर्किड जैसे फूलों से द्वार, खंभों और मंडपों पर आकर्षक आकृतियाँ और पुष्पलहरियाँ बनाई गई हैं। मंदिर को सजाने के लिए आवश्यक फूलों की व्यवस्था मुंबई के एक श्रद्धालु परिवार ने श्रद्धा से कराई है। रविवार रात से ही सजावट का कार्य जारी रहा। मंदिर के गर्भगृह से लेकर बाहरी प्रांगण तक हर दीवार पर रंग-बिरंगे फूलों की छटा ने वातावरण को अलौकिक बना दिया है।
दीपों से जगमग होंगे बदरीनाथ के मार्ग और परिसर
दीपोत्सव की मुख्य संध्या पर मंदिर परिसर के साथ-साथ मार्गों को भी हजारों दीपों से सजाया गया है। बीकेटीसी के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि स्थानीय लोगों और हक-हकूकधारियों के सहयोग से मंदिर प्रांगण और उसके आस-पास के रास्तों को दीपमालाओं से सजाया गया है। दीपों की पंक्तियाँ जैसे-जैसे जलेंगी, वैसे-वैसे बदरीविशाल की घाटी सुनहरी आभा से नहाएगी।इस अवसर पर डिमरी केंद्रीय पंचायत, मेहता, भंडारी, और कमदी हकहकूकधारी परिवारों द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन किया जाएगा। परंपरा के अनुसार, इस दिन माता लक्ष्मी, कुबेर जी और बदरीविशाल के खजाने की विशेष पूजा होती है, जिसमें स्थानीय पुजारी और तीर्थ पुरोहित भाग लेते हैं।
श्रद्धालुओं में उल्लास: “ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा”
मुंबई, गुजरात, सिलीगुड़ी और राजस्थान से आए श्रद्धालुओं ने बदरीनाथ धाम की भव्य सजावट को देखकर श्रद्धा और उत्साह से भर उठे। श्रद्धालु नीलम पटेल (सूरत) कहती हैं — “फूलों से सजा बदरीनाथ मंदिर सचमुच धरती पर स्वर्ग जैसा लग रहा है। दीपों की रौशनी और हिमालय की ठंडी हवा में भक्ति का अनुभव अवर्णनीय है।” देहरादून से आए तीर्थयात्री रमेश थपलियाल का कहना है कि — “हर दीपावली पर यहाँ आता हूँ, मगर इस बार की सजावट अद्भुत है। यह केवल उत्सव नहीं, एक आध्यात्मिक अनुभूति है।”
केदारनाथ में धार्मिक औपचारिकताएँ और स्वर्ण छत्र का अवरोहण
दूसरी ओर केदारनाथ धाम में दीपावली से ठीक पहले कपाट बंद होने की पारंपरिक प्रक्रिया के अंतर्गत स्वर्ण छत्र और कलश को रविवार को गर्भगृह से उतार लिया गया।इस प्रक्रिया से पूर्व भकुंट भैरव की आज्ञा ली गई। इसके बाद पंचपंडा रुद्रपुर के हक-हकूकधारियों ने विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना कर यह धार्मिक कार्य संपन्न कराया।केदारसभा के अध्यक्ष राजकुमार तिवारी, महामंत्री अंकित सेमवाल, ब्लॉक प्रमुख पंकज शुक्ला सहित कई श्रद्धालु उपस्थित रहे। केदारनाथ मंदिर को भी तीन क्विंटल गेंदे के फूलों से सजाया गया है। मंदिर के बाहरी प्रांगण, द्वार और गर्भगृह के चारों ओर फूलों की मालाओं और दीपों से सजावट की जा रही है। सोमवार से भगवान केदारनाथ की बिना श्रृंगार के आरती होगी, जो कपाट बंद होने की प्रक्रिया का संकेत है।
धार्मिक महत्व और परंपरा
बदरीनाथ और केदारनाथ दोनों धामों में दीपावली का पर्व केवल रोशनी का नहीं, बल्कि कृतज्ञता और आभार का उत्सव माना जाता है। मान्यता है कि दीपावली के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों अपने-अपने धामों में जागृत रूप में भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। बदरीनाथ में लक्ष्मी और कुबेर पूजा का अर्थ है समृद्धि और धैर्य का आह्वान, जबकि केदारनाथ में स्वर्ण छत्र उतारने की प्रक्रिया शीतकालीन विश्राम का प्रतीक है।
आस्था और सौंदर्य का संगम
फूलों की सुगंध, दीपों की रोशनी, मंत्रोच्चारण की गूँज और श्रद्धालुओं की भक्ति—इन सबने मिलकर हिमालय की वादियों में एक अलौकिक वातावरण रच दिया है। दीपावली के अवसर पर बदरी-केदार धामों का यह दृश्य न केवल धार्मिक आस्था का प्रमाण है, बल्कि यह बताता है कि विपरीत परिस्थितियों और ठंड के आगमन के बावजूद आस्था की लौ कभी मंद नहीं होती। जब पूरी दुनिया रोशनी के इस पर्व को घर-आँगन में मनाती है, तब उत्तराखंड के ऊँचे हिमालयी धामों में यह उत्सव देवत्व और भक्ति की चरम अभिव्यक्ति बन जाता है। गेंदे के फूलों से सजा बदरीनाथ और दीपों से आलोकित केदारनाथ — दोनों ही धाम यह संदेश देते हैं कि सच्ची दीपावली तब होती है जब मन में श्रद्धा, हृदय में भक्ति और कर्म में प्रकाश हो।




