
देहरादून | उत्तराखंड की बेहद संवेदनशील हिम झीलों में शुमार वसुंधरा झील का सर्वेक्षण हुए पूरे 11 महीने बीत चुके हैं। अक्टूबर 2024 में पूरा हुआ यह सर्वे, यूएसडीएमए, वाडिया इंस्टीट्यूट, आईटीबीपी और एनडीआरएफ की संयुक्त टीम ने किया था। रिपोर्ट भी राज्य सरकार को सौंप दी गई, लेकिन अब तक झील की निगरानी और खतरे की स्थिति में समय पर अलर्ट देने वाला अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) स्थापित नहीं हो पाया है।
राज्य में 13 संवेदनशील हिम झीलें
- राज्य सरकार के मुताबिक उत्तराखंड में कुल 13 हिम झीलें संवेदनशील श्रेणी में आती हैं।
- इनमें से 5 झीलें अति-संवेदनशील मानी गई हैं, जहां ग्लेशियर झील के फटने (GLOF: Glacier Lake Outburst Flood) की आशंका सबसे अधिक है।
- वसुंधरा झील इन्हीं अति-संवेदनशील झीलों में शामिल है।
सर्वेक्षण के अहम निष्कर्ष
सर्वेक्षण रिपोर्ट में वसुंधरा झील के लिए कई बिंदुओं पर चेतावनी दी गई थी –
- झील से पानी निकासी के दो संभावित क्षेत्र चिह्नित किए गए।
- हिमस्खलन और भूस्खलन की आशंका का भी विस्तृत आकलन किया गया।
- सिफारिश की गई कि झील पर तत्काल निगरानी और अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जाए, ताकि निचले इलाकों में आपदा से पहले अलर्ट दिया जा सके।
जिम्मेदारी तय करने में देरी
सिस्टम लगाने के लिए एनडीएमए के माध्यम से धनराशि मिलने की बात है, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि –
- कौन सी संस्था सिस्टम लगाएगी?
- किस विभाग को रखरखाव और निगरानी की जिम्मेदारी दी जाएगी?
मुख्य सचिव स्तर पर होने वाली बैठक में इस पर निर्णय लिए जाने की संभावना जताई जा रही है, लेकिन प्रक्रिया महीनों से अधर में लटकी है।
क्यों जरूरी है अर्ली वार्निंग सिस्टम?
हिमालयी क्षेत्र में पिछले वर्षों में कई बार ग्लेशियर झील फटने से आपदा देखी गई है। 2021 में चमोली आपदा इसका बड़ा उदाहरण रही। विशेषज्ञों का मानना है कि –
- अर्ली वार्निंग सिस्टम समय पर अलर्ट देकर जनहानि और नुकसान कम कर सकता है।
- संवेदनशील झीलों की लगातार निगरानी से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन भी आसान होगा।
आगे क्या?
राज्य सरकार ने संकेत दिए हैं कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली बैठक में जल्द ही इस पर निर्णय होगा। फिलहाल सवाल यही है कि क्या सरकार आपदा आने से पहले तैयारी पूरी कर पाएगी या फिर एक और चेतावनी रिपोर्ट महज़ फाइलों तक ही सीमित रह जाएगी।
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