
देहरादून | उत्तरकाशी जिले के धराली-हर्षिल क्षेत्र में आई भीषण आपदा को एक सप्ताह से अधिक समय हो चुका है, लेकिन इसके कारणों का सही-सही पता अभी तक नहीं लगाया जा सका है। वजह—ऊपरी इलाकों में लगातार बादल और घना कोहरा, जिसने न केवल ज़मीनी जांच बल्कि उपग्रह (सेटेलाइट) से ली जाने वाली तस्वीरों को भी धुंधला कर दिया है।
घटनास्थल की तस्वीर अभी भी अधूरी
एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रो. एमपीएस बिष्ट का कहना है कि मलबा और सैलाब जिस स्थान से आया, वहां की पूरी तस्वीर और आंकड़े अब तक उपलब्ध नहीं हैं। “ऊपर के इलाके को चारों ओर से बादलों ने घेर रखा है, और मानसून के चलते घना कोहरा छाया हुआ है। ऐसे में सैटेलाइट भी सही तस्वीर नहीं ले पा रहा,” उन्होंने कहा।
अंतरराष्ट्रीय डेटा साझेदारी भी ठप
प्रो. बिष्ट ने बताया कि जापान, फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका समेत कई देशों के साथ भारत का एक समझौता है कि प्राकृतिक आपदा की स्थिति में एक-दूसरे के साथ सटीक आंकड़े और तस्वीरें साझा की जाएंगी। “फिलहाल किसी भी देश ने इस मामले में डेटा साझा नहीं किया है। हमारे अपने देश से भी ऊपर के इलाके के बारे में कोई ठोस आंकड़ा नहीं मिला है,” उन्होंने कहा।
स्थानीय जानकारी और सीमाएं
अभी तक केवल नदी किनारे और निचले इलाकों की तस्वीरें और जानकारी मिली है, जो स्थानीय लोगों ने अपने मोबाइल फोन से ली हैं। आसपास के निवासियों का कहना है कि घटना से पहले तीन-चार दिन लगातार बारिश हो रही थी। हालांकि, भारत मौसम विज्ञान विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार वहां अत्यधिक बारिश दर्ज नहीं की गई।
ग्लेशियर झील की संभावना खारिज
2024 के उपग्रहीय आंकड़ों के आधार पर प्रो. बिष्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उस इलाके में कोई ग्लेशियर झील मौजूद नहीं थी, यानी ग्लेशियर झील फटने की संभावना फिलहाल न के बराबर है। आर्मी ने भी ड्रोन के जरिए घटनास्थल तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन खराब मौसम और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण वह सफल नहीं हो सका।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक मौसम साफ नहीं होता और सेटेलाइट या ड्रोन से स्पष्ट तस्वीरें और डेटा नहीं मिलते, तब तक आपदा के वास्तविक कारणों पर कोई भी ठोस वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है।