
चमोली/रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के पहले चरण में जहां 68% मतदान दर्ज किया गया, वहीं इस बार चुनावी नज़ारा बदला हुआ था। न केवल स्थानीय मतदाता पोलिंग बूथों तक पहुंचे, बल्कि इस बार गांव की सत्ता की चाबी थामे प्रवासी मतदाता भारी संख्या में लौटे। यही नहीं, कई गांवों में उम्मीदवारों की जीत-हार का समीकरण प्रवासी वोटों ने पूरी तरह बदल दिया। चमोली जिले के नारायणबगड़, थराली और देवाल विकासखंडों में हुए मतदान में बुजुर्गों, महिलाओं और युवाओं ने चमतोली गदेरे के उफनते पानी को पार कर मतदान केंद्रों तक पहुंचकर लोकतंत्र को मजबूत किया। वहीं, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और रुद्रप्रयाग के पहाड़ी गांवों में भी यही उत्साह देखने को मिला।
गांव लौटे प्रवासी, प्राथमिकता में ग्राम प्रधान
इस बार प्रवासी मतदाताओं का जोर प्रधान पद पर सबसे ज्यादा देखा गया। चंडीगढ़, दिल्ली, देहरादून, गुड़गांव, नोएडा, जयपुर, हरिद्वार जैसे शहरों से आए हजारों प्रवासियों ने अपने पैतृक गांवों में मतदान किया। उन्होंने खुद कहा कि ग्राम पंचायत स्तर पर स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, पेयजल और सड़क जैसी बुनियादी ज़रूरतें उनकी प्राथमिकता में हैं।
गुड़गांव से आए विक्रम ने कहा,
“गांव में अब भी स्वास्थ्य केंद्रों की हालत खराब है। हम लोग चाहते हैं कि जो प्रधान बने, वह इन मूलभूत जरूरतों को प्राथमिकता दे।”
उफनते गदेरे और टूटी सड़कें भी नहीं रोक पाईं लोकतंत्र की आहट
कोट गांव का एक उदाहरण बेहद प्रेरणादायक रहा जहां पुल के अभाव में चमतोली गदेरे को पार कर मतदाताओं ने मतदान किया। युवाओं ने बुजुर्गों और महिलाओं को पीठ पर बैठाकर गहरा और उफनता गदेरा पार कराया। यह दृश्य न केवल लोकतंत्र की जड़ों को गहरा करता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि ग्रामीण जनता अब केवल आश्वासनों से नहीं, विकास के ठोस इरादों से प्रधान चुनना चाहती है।
महिलाएं आगे, पुरुष पीछे
पहले चरण में 73% महिलाओं ने मतदान किया जबकि पुरुषों का प्रतिशत 63% रहा। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि महिलाएं अब न केवल मतदान में सक्रिय हैं, बल्कि निर्णय में भी निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। कई गांवों में महिला मतदाताओं ने स्पष्ट कहा कि वे “पारंपरिक वोट बैंक” का हिस्सा नहीं रहीं बल्कि उन्होंने सोच-समझकर वोट डाला।
बदल गया है गांव, बदल गया है मतदाता
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, गांवों में अब मतदाता जाति, खेमेबाज़ी या रिश्तेदारी से ऊपर उठकर विकास, पारदर्शिता और जवाबदेही पर वोट दे रहे हैं। प्रवासी मतदाताओं का रुझान इसी बदलाव का संकेत है। गांव की सरकार बनाने में अब बाहरी शहरों से लौटे युवाओं और कामगारों की राय अधिक प्रभावशाली होती जा रही है।
राजनीति शास्त्र के अध्यापक डॉ. जितेंद्र बिष्ट कहते हैं —
“प्रवासी मतदाता अब सिर्फ़ दर्शक नहीं रहे। वे गांव के सामाजिक-आर्थिक विकास की चेतना लेकर लौट रहे हैं और यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।”
वोटर ट्रेंड में क्या बदला?
- 5% से लेकर 35% तक प्रवासी मतदाताओं ने मतदान में भागीदारी की।
- दिल्ली, नोएडा, चंडीगढ़, जयपुर से लौटे मतदाताओं ने खासकर ग्राम प्रधान के लिए वोटिंग की।
- गांवों में पहली बार ऐसा हुआ कि कई प्रत्याशी पूरी रणनीति प्रवासी वोटरों को ध्यान में रखकर बना रहे हैं।
- परिवारों ने टेंपो-ट्रेवलर, कार और अन्य साधनों से सामूहिक रूप से गांवों का रुख किया।
यह सिर्फ मतदान नहीं, एक सामाजिक जागरण है
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में प्रवासी मतदाताओं की सक्रियता महज वोट डालने तक सीमित नहीं है। यह उस सामाजिक बदलाव का संकेत है जहां गांव का भविष्य तय करने की बागडोर अब केवल स्थानीय वर्ग के हाथ में नहीं रही। यह प्रवासी चेतना का नया अध्याय है।
दूसरा चरण 28 जुलाई को, तैयारी पूरी
पहले चरण के शांतिपूर्ण मतदान के बाद अब 28 जुलाई को दूसरा चरण होने जा रहा है। प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था को लेकर पूर्ण तैयारियां की हैं। दूसरी ओर प्रत्याशियों का प्रचार और मतदाताओं की रणनीति अब प्रवासी समीकरणों को ध्यान में रखकर तय हो रही है।