
पालघर के नालासोपारा इलाके से सामने आई यह घटना किसी अपराध कथा की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि हमारे आस-पास घट रही असली और भयावह सच्चाई है। एक पत्नी ने अपने 20 वर्षीय प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या की, शव को घर के फर्श के नीचे दफनाया और उसी जगह कई दिनों तक अपने प्रेम संबंध का उत्सव मनाया। जब पुलिस ने टाइल्स उखाड़े और गड्ढे से लाश निकाली, तब पूरे मोहल्ले में जैसे चीख गूंज उठी — यह इंसान है या हैवान?
यह घटना हमें न केवल रिश्तों के खोखलेपन का संकेत देती है, बल्कि यह भी बताती है कि वासनात्मक स्वार्थ जब चरम पर पहुंचता है, तो इंसान कैसे रिश्तों, नैतिकता और मानवता की लाश पर खड़ा होकर अपनी हवस का महल बनाता है।
नालासोपारा की इस घटना को केवल एक ‘हत्या’ कहकर छोड़ देना काफी नहीं। यह सामाजिक विकृति की उस गहराई का संकेत है, जहाँ स्त्री-पुरुष संबंध केवल शरीर तक सीमित होकर अपराध की भूमिका बन जाते हैं। न पत्नी के मन में अपराधबोध था, न प्रेमी के मन में कोई डर। हत्या के बाद उन्हीं टाइल्स पर बिछा हुआ बिस्तर उनके ‘प्यार’ का गवाह बना रहा।
क्या यह हमारे समाज की नई तस्वीर है?
जहाँ पति की गैरमौजूदगी में पत्नी के पास मोबाइल, चैटिंग और प्रेमी का पूरा विकल्प मौजूद है? जहाँ हत्या एक विकल्प बन चुकी है, तलाक या संवाद नहीं?
यह एक स्त्री-पुरुष का मामला नहीं, विश्वास, पवित्रता और पारिवारिक मूल्यों का हनन है।
आज ज़रूरत है कि हम इन खबरों को महज ‘विचित्र’ या ‘सनसनीखेज़’ की तरह न देखें, बल्कि इनसे उपजे सवालों का सामना करें:
- क्या हमारी शिक्षा प्रणाली भावनात्मक बुद्धिमत्ता सीखा पा रही है?
- क्या हम परिवार को केवल ‘रहने की जगह’ मान बैठे हैं, जहाँ आत्मा नहीं, केवल देह बसती है?
- क्या हम अपने युवाओं को केवल मनोरंजन, डेटिंग ऐप और यौन-स्वतंत्रता तक सीमित कर रहे हैं, जहाँ संयम, ज़िम्मेदारी और संवाद जैसी बातें पुरानी लगने लगी हैं?
नालासोपारा की यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं, एक पूरे समाज के नैतिक शव की खुदाई है।