
क्या हुआ?
हरियाणा के गुरुग्राम में रहने वाली एक युवती शर्मिष्ठा, जो सोशल मीडिया पर राष्ट्रवादी विचारों के लिए जानी जाती है, को पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा कोलकाता में दर्ज एक शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के वक्त वह अपने घर पर थी, जहां कोलकाता पुलिस की टीम दिल्ली और गुरुग्राम पुलिस के सहयोग से पहुंची और बिना स्थानीय न्यायालय में प्रस्तुत किए, उसे सीधे बंगाल ले जाया गया।
आरोप क्या हैं?
शर्मिष्ठा पर सोशल मीडिया पर कथित ‘भड़काऊ’ पोस्ट करने का आरोप है। कहा जा रहा है कि उसने पाकिस्तान, जिहाद और ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ कुछ तीखे विचार व्यक्त किए थे, जिसे लेकर बंगाल में किसी ने शिकायत दर्ज कराई।
प्रश्न कई हैं, जवाब कोई नहीं:
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क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब राज्य की सीमाओं में बंधी है?
जब देश का संविधान प्रत्येक नागरिक को बोलने की स्वतंत्रता देता है, तब एक युवती का सोशल मीडिया पर लिखा कुछ इतना ख़तरनाक कैसे हो सकता है कि उसे सैकड़ों किलोमीटर दूर से गिरफ्तार कर बंगाल लाया जाए? -
क्या यह गिरफ्तारी डर फैलाने की रणनीति है?
जिस तरह से शर्मिष्ठा को बिना ज़मानत या सुनवाई के सीधे कोलकाता ले जाया गया, वह एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक संदेश प्रतीत होता है—”बोलने की हिम्मत करोगे, तो यही हाल होगा।” -
क्या यही प्रक्रिया एक ‘जिहादी’ के लिए भी अपनाई जाती?
अगर यही मामला उल्टा होता—कोलकाता में कोई कट्टरपंथी व्यक्ति देशविरोधी बयान देता, तो क्या उसे दिल्ली से पकड़कर लाना इतना ही आसान होता? क्या वहां की सरकार सहयोग करती?
शर्मिष्ठा कौन है?
शर्मिष्ठा कोई राजनेता या प्रभावशाली हस्ती नहीं है। वह एक आम हिन्दू लड़की है, जो राष्ट्रवादी विचारों के साथ सोशल मीडिया पर सक्रिय थी। उसका परिवार आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है, ना ही उसके पास कोई राजनीतिक संरक्षण है। अब जब वह बंगाल की जेल में है, तो उसकी सुरक्षा, कानूनी मदद और न्याय – तीनों अधर में लटके हैं।
इस गिरफ्तारी के संभावित इरादे:
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डर फैलाना: ताकि सोशल मीडिया पर हिन्दू राष्ट्रवाद से जुड़े लोग अब सरकारों पर सवाल न उठाएं।
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चुनिंदा कार्रवाई: जहाँ एक विचारधारा को दबाया जाए और दूसरी को संरक्षण दिया जाए।
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राजनीतिक संदेश: बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी हैं कि वे ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ की विचारधारा के खिलाफ हैं। ऐसे में यह कार्रवाई प्रतीकात्मक भी हो सकती है।
हिन्दू समाज की चुप्पी चिंताजनक क्यों है?
100 करोड़ से अधिक हिन्दू आबादी वाले देश में, जब एक अकेली लड़की को अभिव्यक्ति के लिए जेल में डाला जाता है, और पूरा समाज चुप रहता है—तो यह सिर्फ शर्म का विषय नहीं, बल्कि गंभीर आत्ममंथन का कारण होना चाहिए।
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क्या हिन्दू समाज अब इतना डर गया है कि अन्याय के खिलाफ भी आवाज़ नहीं उठाता?
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क्या वह तभी जागेगा, जब यह आग उसके घर तक पहुंचेगी?
न्याय की पुकार:
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शर्मिष्ठा के पक्ष में एक मज़बूत लीगल टीम खड़ी की जानी चाहिए।
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मीडिया, सोशल मीडिया और राष्ट्रवादी संगठन इस मामले को गंभीरता से उठाएं।
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सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से स्वतः संज्ञान लेने की अपेक्षा की जाती है।
अंत में:
यह मामला एक विचारधारा की अभिव्यक्ति को कुचलने की कोशिश है। यह न सिर्फ शर्मिष्ठा की लड़ाई है, बल्कि हर उस नागरिक की लड़ाई है जो सत्ता से सवाल पूछने की हिम्मत रखता है।
यदि आज हमने चुप रहकर यह अन्याय सह लिया, तो कल शायद हमारे अपने शब्दों को भी ‘अपराध’ कह दिया जाएगा।