
ऋषिकेश। पैरों की नसों में ब्लाॅकेज का उपचार अब बिना सर्जरी के भी हो सकेगा। एम्स के रेडियोलॉजी विभाग ने एथेरेक्टाॅमी तकनीक से फीमोरल धमनी (जांघ की सबसे बड़ी रक्त वाहिका) में ब्लाॅकेज की समस्या का उपचार किया है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें बाइपास सर्जरी करने से बचा जा सकता है और साथ ही रक्त वाहिका में स्टंट डालने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है। इस प्रक्रिया से इलाज करने वाला एम्स ऋषिकेश देश के नवस्थापित एम्स संस्थानों में पहला एम्स है।
एम्स के डायग्नोस्टिक और इंटरवेंशन रेडियोलॉजी विभाग (डीएसए लैब) ने अप्रैल के पहले सप्ताह में देहरादून निवासी एक 68 वर्षीय रोगी का एथेरेक्टाॅमी तकनीक से सफल इलाज किया। रोगी के पैरों की नसों में ब्लाॅकेज के कारण उसे चलने-फिरने में दर्द के साथ दिक्कत थी और उसके पैरों का रंग भी काला पड़ गया था। रेडियोलाॅजी विभागाध्यक्ष प्रो. अंजुम ने बताया कि यह परिधीय धमनी रोग (पीएडी) से पीड़ित रोगियों के लिए विशेष फायदेमंद है। इससे उनके इलाज में अब आसानी हो सकेगी।
इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर और इस प्रक्रिया के ऑपरेटिंग विशेषज्ञ डॉ. उदित चौहान ने बताया कि ’एसएफए एथेरेक्टोमी’ एक न्यूनतम इनवेसिव एंडोवास्कुलर तकनीक है जिसे सुपरफिशियल फेमोरल आर्टरी से एथेरोस्क्लेरोटिक प्लेक को हटाने के लिए डिजाइन किया गया है। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया से रोगी के पैरों में रक्त का प्रवाह बेहतर हो जाता है और दर्द और अन्य लक्षणों में भी जल्द सुधार होता है। विभाग के डॉ. पंकज शर्मा और डाॅ. उदित ने सलाह दी है कि पैरों में ब्लाॅकेज की समस्या वाले रोगी अस्पताल के पांचवें तल पर स्थित डीएसए लैब में आकर उनसे परामर्श ले सकते हैं।
हमारे चिकित्सकों द्वारा इस प्रक्रिया का सफल निष्पादन करना, उन्नत चिकित्सा तकनीकों को अपनाने और रोगियों को अत्याधुनिक उपचार प्रदान करने के लिए संस्थान की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। एसएफए एथेरेक्टॉमी की शुरुआत करके एम्स ऋषिकेश ने, न केवल अपनी इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी क्षमताओं को बढ़ाया है अपितु अन्य नए एम्स संस्थानों के सम्मुख एक मिसाल भी कायम की है। चिकित्सा देखभाल में नवाचार और उत्कृष्टता के माध्यम से रोगी परिणामों में सुधार के लिए यह उपलब्धि एम्स ऋषिकेश की प्रतिबद्धता साबित करती है।
– प्रो. मीनू सिंह, निदेशक, एम्स ऋषिकेश