
भोपाल: मध्य प्रदेश डेयरी फेडरेशन के सांची दूध की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठे हैं। राजगढ़ जिले में खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने पिछले डेढ़ महीने में तीन निजी डेयरियों पर छापा मारकर भारी मात्रा में नकली दूध बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री जब्त की है। दस्तावेजों से पता चला है कि एक महीने में डेयरी संचालक ने भोपाल दुग्ध संघ को 4200 लीटर मिलावटी दूध सप्लाई किया था। यह सिलसिला पिछले 6 महीने से चल रहा था।
राजगढ़ जिले के खाद्य विभाग और पुलिस की टीम ने 13 जनवरी 2025 को जितेंद्र गिरी की डेयरी पर छापा मारकर नकली दूध बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री जब्त की थी। इसमें सोयाबीन तेल, मिक्सर ग्राइंडर और यूरिया शामिल थे। इस सामग्री को असली दूध में मिलाकर मिलावटी दूध तैयार किया जाता था। जितेंद्र गिरी इस दूध को भोपाल दुग्ध संघ की सहकारी समिति गोस्वामी दूध संग्रहण केंद्र, आगर (राजगढ़) को सप्लाई करता था। यहां से दूध सांची के नरसिंहगढ़ स्थित चिलिंग सेंटर और फिर भोपाल स्थित प्लांट में पहुंचता था।
4 फरवरी को राजगढ़ में ही खाद्य विभाग ने कन्हैयालाल डांगी को नकली दूध बनाते पकड़ा था। यहां माल्टोज पाउडर और तेल से नकली दूध बनाया जा रहा था। गोरखपुर की सहकारी समिति सांची के नाम से बनी थी, जो नरसिंहगढ़ के चिलिंग स्टेशन को दूध की आपूर्ति करती थी। दस्तावेजों की जांच में पता चला कि एक महीने पहले डेयरी संचालक ने सांची के केंद्र को दूध की आपूर्ति बंद कर दी थी।
सिंथेटिक दूध बनाने वाले लोग सोयाबीन तेल, माल्टोज पाउडर, यूरिया और कास्टिक सोडा का इस्तेमाल करते हैं। ये सामग्री इतने सही अनुपात में मिलाई जाती है कि आधुनिक मशीनों से भी इसकी पहचान करना मुश्किल होता है। भोपाल दुग्ध संघ के अधिकारियों ने बताया कि पूरे मामले की जांच की जा रही है। सवाल यह उठ रहा है कि सांची के कलेक्शन सेंटर पर मिलावटी दूध कैसे नहीं पकड़ा गया और मिलावटखोरों ने इतने बड़े पैमाने पर सिंथेटिक दूध कैसे बेच दिया।
- सोयाबीन तेल: दूध में वसा की मात्रा बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- माल्टोज पाउडर: दूध को गाढ़ा और मीठा बनाने के लिए।
- यूरिया: दूध को सफेद और प्राकृतिक रंग देने के लिए।
- कास्टिक सोडा: दूध में तेल मिलाने के लिए डिटर्जेंट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- मिलावटी दूध से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान
- अल्पकालिक प्रभाव: पेट दर्द, दस्त, उल्टी और त्वचा संबंधी एलर्जी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
- दीर्घकालिक प्रभाव: पाचन संबंधी समस्याएं, लिवर सिरोसिस और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा।