नई दिल्ली। अंधाधुंध तरीके से अवैध निर्माण, ट्रैफिक जाम, सीवर और अन्य माध्यमों से फैल रहे प्रदूषण के अलावा अनियोजित इंसानी दखल से उत्तराखंड के जोशीमठ में आपदा हुई। लेकिन इस मामले में उत्तराखंड सरकार का रवैया उदासीन ही बना हुआ है। बिगड़ रहे हालात को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अब उत्तराखंड के मुख्य सचिव से पूछा है कि प्रदेश सरकार हालात को सुधारने के लिए क्या कर रही है। इस रिपोर्ट में मुख्य सचिव को बजट आवंटन, जिम्मेदार अधिकारियों को चिन्हित कर नाम और समायबद्ध योजना भी बताना है।
एनजीटी के चेयरमेन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए सेंथिल वेल के आदेश में कहा गया है कि उत्तयखंड सरकार की 19 जून को रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि इन हालात को देखते हुए कोई काम जमीनी स्तर पर नहीं हुआ है। जो कार्ययोजना एनजीटी को दी गई उसमें भी ऐसा कुछ नहीं है, जिससे जमीनी स्तर पर कोई प्रभावी काम होता दिखे।
यह रिपोर्ट सिर्फ समीक्षा बैठक, विवेचना और सामान्य बयान का ही इशारा करती है। जब तक कोई ठोस काम जमीनी स्तर पर नहीं होगा यह समस्या हल नहीं हो पाएगी। रिपोर्ट में बजट आवंटन की भी कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस क्षेत्र की सहनीय क्षमता का आकलन और पौधरोपण योजना के बारे में भी कोई जानकारी रिपोर्ट में नहीं दी गई है। इस मामले में एनजीटी अब 1 अक्तूबर को सुनवाई करेगा। इससे पहले मुख्य सचिव को अपनी रिपोर्ट देनी है।
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि करीब एक साल से यह प्रकरण लंबित है। इस मामले में एनजीटी के पूर्व के आदेश के अनुपालन में अधिकारियों ने रिपोर्ट तक पहले देना जरूरी नहीं समझा। यह स्थिति उस समय रही जबकि जमीन के धंसने जैसे मामले यहां सामने आने लगे। संपत्तियों को बड़े स्तर पर नुकसान हुए। लोगों को अपनी जगह से विस्थापित होना पड़ा।