देहरादून। कण्वाश्रम, कण्व ऋषि का वही आश्रम है जहां हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय के पश्चात “भरत” का जन्म हुआ था। भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। शकुन्तला ऋषि विश्वामित्र व अप्सरा मेनका की पुत्री थी। महाकवि कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुंतलम और पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है।
हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्तिथ ‘कण्वाश्रम’ ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। कण्वाश्रम के बारे में यह माना जाता है कि इस स्थान पर कण्व ऋषि का आश्रम था। क्षेत्र की प्रमुख ऐतिहासिक धरोहरों में ‘कण्वाश्रम’ प्रमुख है, जिसका उल्लेख पुराणों में विस्तार से मिलता है। इस स्थान के विशाल भूभाग में फैले महर्षि कण्व का आश्रम आज से कई सहस्त्र शताब्दी पूर्व एक विश्व विख्यात आध्यात्मिक केंद्र व एक आदर्श गुरूकुल महाविद्यालय था, जहां दस सहस्त्र विद्यार्थी कुलपति महर्षि कण्व से शिक्षा ग्रहण करते थे। कण्वाश्रम शिवालिक की तलहटी में मालिनी नदी के दोनों तटों पर स्थित छोटे-छोटे आश्रमों का प्रसिद्ध विद्यापीठ था, जिसमंे सिर्फ उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा थी। इसमें सिर्फ वो विद्यार्थी प्रवेश ले सकते थे, जो कि सामान्य विद्यापीठ का पाठ्यक्रम पूरा कर और अधिक अधयन्न करना चाहते थे। आश्रम में रहने वाले योगी अकेली जगह में कुटिया बनाकर उसके अन्दर रहते थे। यह स्थान ऋषी मुनियों की तप स्थली भी था, जहॉ वे साधना मे लीन मोक्ष की प्राप्ति के लिए कठोर तप करते थे।
माना जाता है कि विश्वमित्र व मेनका अप्सरा के प्रणय संबंधों के फलस्वरूप उत्पन्न कन्या को मेनका कण्वाश्रम के आस-पास जंगल में छोड़ गई। तपस्या में लीन महर्षि कण्व ने जब बच्चे के रोने की आवाज सुनी, तो वे वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सुंदर नवजात कन्या दिखी जो शाकुंत पक्षियों से घिरी मिली। महर्षि कण्व बच्ची को आश्रम ले आए व उसको शकुंतला नाम दिया और उसका लालन-पालन किया। एक दिन महाराजा दुष्यंत ने महर्षि कण्व की गोद ली पुत्री शकुंतला को देखा तो वे उसके संस्कारों व सुंदरता से प्रभावित हुए और उन्होंने शकुंतला से गंधर्व विवाह किया। कुछ समय पश्चात शकुंतला ने एक अत्यंत सुंदर व तेजस्वी बालक को जन्म दिया। इस वीर बालक का बचपन “कण्वाश्रम” में सिंह शावकों से क्रीड़ा एवं ज्ञानार्जन में व्यतीत हुआ। बड़े होकर इसी बालक ने इस विशाल भूखंड को एकीकृत कर इस राज्य पर राज किया और ये बालक चक्रवर्ती सम्राट “भरत” के नाम से जाना गया और इसी महान पराक्रमी राजा के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। कण्वाश्रम केदारनाथ एवं बद्रीनाथ के प्राचीन तीर्थ मार्ग पर स्थित था। प्राचीन अभिलेखों के अनुसार, केदारनाथ एवं बद्रीनाथ की यात्रा पर निकले तीर्थ यात्रियों का यह अनिवार्य विश्राम स्थल था। जंगलों एवं नदियों को पार करते हुए यह तीर्थयात्रा पैदल ही पूर्ण की जाती थी। मार्ग में उपस्थित उन्नत गुरुकुल के रूप में, कण्वाश्रम एक तीर्थस्थान बन गया था। बद्रीनाथ के लिए नवीन पक्की सड़क के निर्माण के पश्चात यह मार्ग निरर्थक एवं वीरान बन गया। कदाचित कण्वाश्रम नवीन मार्ग पर ना होने के कारण शनैः शनैः जनमानस की स्मृतियों से लुप्त होने लगा। महाभारत एवं स्कन्द पुराण में भी कण्वाश्रम का उल्लेख है। स्कन्द पुराण में इसे ऐसा तीर्थ स्थल माना गया है जिसके दर्शन प्रत्येक श्रद्धालु के लिए अनिवार्य था।