देहरादून। सात झीलों का समूह सात ताल भवाली से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ के दृश्य यहाँ आए पर्यटकों को बहुत ही लुभाते हैं। एक साथ सात झीलों का आलौकिक रूप बस यहीं पर देखा जा सकता है। इसकी आकृति अश्वखर के समान है। इसकी लम्बाई 19 मीटर है, चौड़ाई 315 मीटर और गहराई 150 मीटर तक आंकी गयी है और यह समुद्र तल से 1288 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ पर सात छोटी-छोटी झीलों का समूह है। इंग्लैण्ड के वेस्ट मोरलैंड के साथ इसकी तुलना की जाती है। सात ताल की ओर आने पर पहली झील पुरानी नलदमयंती झील है। आगे की ओर बढ़ने पर स्टेनली जॉन्स नामक एक अमेरिकी मिशनरी का आश्रम है। अगली झील पन्ना या गरूड़ झील है। नीचे की ओर बढ़ने पर राम, लक्ष्मण एवं सीता झील, इन तीनों झीलों का समूह है।
नल-दमयंती ताल-
सबसे पहले जो ताल पड़ती है वो है नल-दमयंती ताल। माहरा गाँव से सात ताल जाने वाले मोटर-मार्ग पर यह ताल स्थित है। जहाँ से महरागाँव सातताल मोटर मार्ग शुरू होता है, वहाँ से तीन किलोमीटर बांयीं तरफ यह ताल है। इस ताल का आकार पंचकोणी है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार नल दमयन्ती झील का नाम एक राजा नल और उसकी पत्नी दमयन्ती के नाम पर पड़ा जो यहाँ पर आये थे और बाद में इस ताल में ही उनकी समाधि बन गयी। उस समय में यह ताल बहुत बड़ी थी और इससे लगभग पूरे गाँव में सिंचाई की जाती थी इसी कारण यहाँ की खेती भाबर की खेती को मात करती थी और यहाँ पर बहुत घना जंगल था जो अब खत्म होने लगा है।
इसमें कभी-कभी कटी हुई मछलियों के अंग दिखाई देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अपने जीवन के कठोरतम दिनों में नल दमयन्ती इस ताल के समीप निवास करते थे। जिन मछलियों को उन्होंने काटकर कढ़ाई में डाला था, वे भी उड़ गयी थीं। कहते हैं, उस ताल में वही कटी हुई मछलियाँ दिखाई देती हैं।
उसी समय एक महात्मा के द्वारा इस झील में मछलियाँ पाली गई थी और ऐसी मान्यता रही कि इस झील में कभी भी मछलियाँ नहीं मारी जा सकती हैं। यह मान्यता आज भी बनी हुई है। जिस की वजह से इस झील में आज भी काफ़ी बड़ी और प्रमुख मछलियों का अस्तित्व बचा हुआ है। इन मछलियों में प्रमुख हैं सिल्वर कार्प, गोल्डन कार्प और महासीर जिन्हें बिना किसी मेहनत के झील के बिल्कुल साफ़ पानी में यहाँ वहाँ घूमते हुए आसानी के साथ देखा जा सकता है।
गरुड़ ताल-
इसके बाद गरुड़ ताल पड़ती है। यह छोटी सी ताल है और इसका पानी बहुत ही साफ़ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस झील के पास पांडवों के वनवास के दौरान द्रौपदी ने अपनी रसोई बनाई थी। द्रौपदी द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले सिल-बट्टा आज भी यहाँ पर पत्थरों के रूप में मौजूद है। स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस पूरे इलाके में पांडव अपने वनवास के दौरान रहे थे।
राम, लक्ष्मण, सीता ताल-
इसी ताल से कुछ आगे राम, लक्ष्मण, सीता ताल है। यह ताल सबसे बड़ी ताल है जिसमें तीनों ताल एक साथ जुड़ी हुई है। कहा जाता है की यहाँ पर राम, लक्ष्मण, सीता रहा करते थे। यहाँ पांडव लोग भी रहे थे और यहीं भीम ने हिडिंबा राक्षसी का अंत किया था।
सूखा ताल और पूर्ण ताल-
सूखा ताल और पूर्ण ताल झीलों का अस्तित्व लापरवाहियों के चलते अब समाप्त हो गया है। पर इन दो झीलों के अलावा जो झीलें हैं वो आज भी अच्छी स्थिति में हैं। यहाँ एक प्राचीन चर्च भी है जो अपने शिल्प के लिये काफ़ी मशहूर है। सातताल से ही 7-8 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई तय करके हिडिंबा देवी का मंदिर भी है। इस मंदिर में जो बाबा जी रहते हैं उन्होंने कई प्रजातियों के पेड़-पौंधे, फूल और जड़ी-बूटियां यहाँ पर लगाई हैं जिस कारण इस स्थान पर विभिन्न प्रजातियों की चिड़ियाँ देखने को भी मिल जाती हैं।
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November 15, 2024