देहरादून। पथराव और उपद्रव के आरोप में जेल गए साथियों के बाहर आने के बाद भी बेरोजगार युवा शहीद स्थल पर धरने से नहीं उठे। वहीं दूसरी तरफ राजधानी में कांग्रेसियों ने प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के नेतृत्व में जोरदोर हंगामा किया। महिला कांग्रेस कार्यकर्ता भी इस प्रदर्शन में शामिल हुई, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया।
भर्ती घोटालों की सीबीआई जांच की मांग और बेरोजगार संघ सदस्यों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की मांग को लेकर सचिवालय कूच करने जाते कांग्रेसियों को पुलिस द्वारा सचिवालय से पहले बैरिकेडिंग लगाकर रोका गया। इस दौरान पुलिस व कार्यकर्ताओं के बीच धक्का-मुक्की हुई। कार्यकर्ताओं ने बैरिकेडिंग के समीप धरना प्रदर्शन किया, जिसके बाद पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर ले जाया गया।
पथराव और उपद्रव के आरोप में जेल में बंद बॉबी पंवार समेत सात युवाओं को भी कोर्ट ने सशर्त जमानत दे दी है। इससे पहले 11 फरवरी को छह युवाओं की जमानत मंजूर हुई थी। धारा 307 बढ़ाने के लिए प्रस्तुत घायल अधिकारियों के मेडिकल सर्टिफिकेट और अभियोजन की दलीलों को कोर्ट ने नकार दिया। लिहाजा, पुलिस की यह मांग भी खारिज हो गई। देर शाम सभी 13 युवा जेल से बाहर आ गए।
सीजेएम लक्ष्मण सिंह की कोर्ट में बुधवार को सात आरोपियों की जमानत, धारा 307 बढ़ाने, छह आरोपियों की जमानत रद्द करने पर बहस हुई। सबसे पहले कोर्ट ने धारा 307 बढ़ाने के मामले में सुनवाई की। अभियोजन ने कहा कि पथराव में एसओ प्रेमनगर की हालत बेहद खराब है। उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया है। सिर पर चोट लगी है और वह चल भी नहीं पा रहे हैं।
अभियोजन ने प्रेमनगर और सुभारती अस्पताल के मेडिकल सर्टिफिकेट दाखिल किए। इसके अलावा सीओ प्रेमनगर की रीढ़ की हड्डी में चोट आने की बात कही। बचाव पक्ष ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अभियोजन अधिकारियों के घायल होने की बात गलत कह रहा है।
यदि वे इतने गंभीर चोटिल हुए होते तो अगले दिन ड्यूटी कैसे कर रहे थे। जिनका नाम लिया जा रहा है, उनमें से कई अधिकारी अगले दिन शहीद स्मारक पर ड्यूटी कर रहे थे। अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अभियोजन की इस मांग को ठुकरा दिया। कोर्ट ने मेडिकल सर्टिफिकेट और तथ्यों को सिरे से खारिज करते हुए धारा बढ़ाए जाने का आधार नहीं माना।
कोर्ट ने पहले जमानत पाए छह आरोपियों की जमानत रद्द करने की मांग पर दोनों पक्षों को सुना। अभियोजन ने कहा कि उन्हें जमानत परीक्षा देने के आधार पर मिली थी। लेकिन, उन्होंने न तो बेल बॉन्ड भरा और न ही परीक्षा दी। लिहाजा, जमानत रद्द कर दी जाए। बचाव पक्ष ने विरोध करते हुए इसके लिए अपील में जाने का तर्क रखा।
कोर्ट ने बचाव की दलील सही ठहराते हुए अभियोजन की इस मांग को भी खारिज कर दिया। लंच के बाद कोर्ट में जमानत पर सुनवाई शुरू हुई। पुराने तर्कों को रखते हुए बचाव पक्ष ने जमानत की मांग की। तर्क दिया कि पुलिस इन सभी को गलत फंसा रही है।
अदालत ने बचाव पक्ष की दलील सुनी और पाया कि जमानत नहीं देने के लिए पुलिस ने कोई ठोस तथ्य प्रस्तुत नहीं किए हैं। न ही किसी विशिष्ट कारनामों को बताया है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद सभी सात आरोपियों को 30-30 हजार रुपये के निजी मुचलकों और दो-दो जमानती प्रस्तुत करने पर जमानत दे दी। अभियोजन की ओर से संयुक्त निदेशक विधि गिरीश पंचोली, जिला शासकीय अधिवक्ता गुरु प्रसाद रतूड़ी और बचाव की ओर से अधिवक्ता मनमोहन कंडवाल, अनिल शर्मा, शिवा वर्मा और रॉबिन त्यागी उपस्थित रहे।