भारत का हृदय प्रदेश माने जाने वाले मध्य प्रदेश में पर्यटन के वैसे तो कई स्थल हैं लेकिन यदि प्राचीन धरोहरों वाले स्थल की बात करें तो मांडू या माण्डवगढ़ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यह मध्य प्रदेश के धार जिले के माण्डव क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन शहर है। यहां बड़ी संख्या में सैलानी जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और वास्तुकला के उत्कृष्टत उदाहरण देखने आते हैं। मांडू का महल भी यहां के प्रमुख आकर्षणों में से एक है।
जहाजनुमा आकार में बनाये गये इस महल का निर्माण दो तालाबों के बीच किया गया है। टेढ़ी-मेढ़ी दीवारों के चलते इस महल को हिंडोला महल भी कहा जाता है। मांडू में दाखिल होने के लिए वैसे तो 12 मार्ग हैं लेकिन जो मुख्य रास्ता है वह दिल्ली दरवाजा कहलाता है। अन्य दरवाजों में रामगोपाल दरवाजा, जहांगीर दरवाजा और तारापुर दरवाजा प्रमुख हैं।
रानी रूपमती और बाजबहादुर के प्रणय प्रसंगों के गवाह इन महलों से दूर नर्मदा नदी की पतली-सी रेखा, जहाज महल व हिंडोला महल की अद्भुत कारीगरी कुल मिलाकर यहां इतना सब है कि पर्यटकों को लगेगा कि उनका मांडवगढ़ पहुंचना सार्थक हो गया। मध्य प्रदेश के इंदौर से लगभग 100 किलोमीटर सड़क के रास्ते से मांडवगढ़ जब जाते हैं तो लगता है कि यहां के अवशेषों का एक−एक पत्थर राजपूत राजाओं ओर फिर मुगल सम्राटों के वैभव−पराभव के कहानी कह रहा है।
दूर−दूर तक फैला एकांत और रात की निस्तब्धता में जब आप मांडव में रात गुजारेंगे तो ऐसा आभास होगा कि मानो संपूर्ण अतीत मुखर होकर चहल−पहल में बदल गया है और नतर्कियों के पैरों व घुंघरूओं की थाप जहाज महल के फर्श पर मुखरित हो रही है। अतीत के इस समृद्ध वैभव को जब आप देखने आ ही रहे हैं तो कम से कम दो दिन यहां जरूर बिताएं।
यहां से 124 किलोमीटर दूर रतलाम रेल जंक्शन है, जो दिल्ली, मुंबई रेलमार्ग का मुख्य स्टेशन है, 100 किलोमीटर दूर इंदौर भी रेलमार्ग से मुंबई और दिल्ली से जुड़ा हुआ है। इंदौर से मांडू के लिये नियमित बस सेवा है। भोपाल, रतलाम, महू, उज्जैन व इंदौर से यहां के लिए सीधी बसें भी हैं। इंदौर से टैक्सी सेवाएं भी आपको सरलता से उपलब्ध हो सकती हैं।
यहां के दर्शनीय स्थलों में जामा मस्जिद, होशंगशाह का मकबरा, मुख्य दरवाजे, अशर्फी महल, जहाज महल, हिंडोला महल और बाजबहादुर महल मुख्य रूप से शुमार किये जाते हैं। इन सभी स्थलों की कारीगरी देख कर पर्यटक सम्मोहित हो जाते हैं। इनके अतिरिक्त रेवा कुंड भी अवश्य देखें। इस तालाब में दूरस्थ नर्मदा नदी का पानी संग्रहित करने की व्यवस्था बाजबहादुर ने कराई थी। इसका उपयोग रानी रूपमती द्वारा किया जाता था।
16वीं शताब्दी के प्रारंभ में बाजबहादुर द्वारा अपने लिए बनवाए गए खूबसूरत महलों के अलावा रूपमती परिसर, निकहत महल, हाथी महल, परिया खान मकबरा, दाई का मकबरा, दाई की छोटी बहन का महल, ईको प्वाइंट आदि इतनी ऐतिहासिक धरोहरें हैं कि इनको देखते हुए आप रानी रूपमती व बाजबहादुर की प्रणय गाथाओं में खो जाएंगे।
मांडू में ठहरने के लिए सस्ती व अच्छी व्यवस्थाएं हैं। यहां टूरिस्ट काटेज, टै्रवलर्स लाज, मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के भवन हैं, जहां आसानी से जगह मिल जाती है। तवेली महल गेस्ट हाउस, होटल रूपमती, साडा रेस्ट हाउस, जैन धर्मशाला में ठहरने की बढि़या व्यवस्था है। लोक निर्माण विभाग व वन विभाग के विश्रामगृहों में भी पर्यटकों के रूकने की अच्छी व्यवस्था है। वैसे तो बरसात के मौसम में मांडू जाने का अलग ही आनंद है। किन्तु मार्च से जुलाई तक का समय मांडू जाने के लिए बढ़या रहेगा।