रुड़की। नेपाल में आए भूकंप से ज्यादा तीव्रता के भूकंप का खतरा राज्य में बना हुआ है। लंबे समय से बने गैप के कारण भविष्य में बड़े भूकंप की आशंका गहराने लगी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले पांच से दस साल में उत्तराखंड में 6 से 7 तीव्रता तक का भूकंप आ सकता है। भूकंपीय विज्ञान में भूकंप की संभावनाओं के लिए उपयोग की जाने वाली गणितीय समीकरणों का परिणाम राज्य में बड़े भूकंप के लिए 90 प्रतिशत तक आंका गया है इसलिए खतरा बरकरार है।
हिमालयन बेल्ट में फाल्ट लाइन के कारण लगातार भूकंप के झटके आ रहे हैं और भविष्य में इसकी आशंका बनी हुई है। इसी फाल्ट पर मौजूद उत्तराखंड में लंबे समय से बड़ी तीव्रता का भूकंप न आने से यहां बड़ा गैप भी बना हुआ है। इससे हिमालयी क्षेत्र में 6 मैग्नीट्यूड से अधिक के भूकंप के बराबर ऊर्जा एकत्र हो रही है।
राज्य में पूर्व में आए बड़ी तीव्रता के भूकंप की बात करें तो 1999 में चमोली में आए भूकंप का मैग्नीट्यूड 6.8, 1991 के उत्तरकाशी में 6.6, 1980 में धारचूला 6.1 मैग्नीट्यूड के भूकंप आ चुके हैं। वहीं नेपाल में बुधवार सुबह आए करीब 6 मैग्नीट्यूड के भूकंप को डैमेजिंग कहा जा रहा है। आईआईटी रुड़की के भूकंप अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिक प्रो. एमएल शर्मा ने बताया कि करीब 30 साल के अंतराल में बड़े भूकंप की आशंका प्रबल हो जाती है।
उत्तराखंड में चमोली और उत्तरकाशी में छह मैग्नीट्यूड से अधिक के भूकंप 2000 से पहले के हैं। इसके बाद से बड़ा भूकंप नहीं आया है। उन्होंने बताया कि भूकंप विज्ञान में भूकंप की आशंका के लिए गुटनबर्ग रिएक्टर कैलकुलेशन का उपयोग किया जाता है। समय-समय पर इस कैलकुलेशन से भूकंप की आशंका को प्रतिशत में निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि राज्य में भूकंप की दृष्टि से कैलकुलेशन के परिणाम बात रहे हैं कि राज्य में 6 से 7 मैग्नीट्यूड तक का भूकंप आने का चांस 90 प्रतिशत है। ऐसे में भूकंप से पहले की तैयारियों को पुख्ता किया जाना जरूरी है।
वैज्ञानिक प्रो. एमएल शर्मा ने बताया कि नेपाल में आए भूकंप का केंद्र धरती से नीचे करीब दस किलोमीटर था और छह मैग्नीट्यूड के आसपास था। इस कारण काफी घातक कहा जा सकता है। वहीं देहरादून और रुड़की की बात करें तो दूरी के हिसाब से यहां इसकी तीव्रता कम रही है। अनुमान मुताबिक देहरादून रुड़की के आसपास इसकी तीव्रता घटकर पांच और दिल्ली में चार के आसपास मानी जाएगी। इसके तहत स्थानीय स्तर पर इसके झटके बहुत कम महसूस किए गए हैं।
वैज्ञानिकों की ओर से लगातार इस बात का भी आकलन किया जा रहा है कि समय-समय पर आ रहे छोटे भूकंप का भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप से क्या संबंध हो सकता है। लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस अध्ययन सामने नहीं आ सका है। वहीं, आईआईटी के वैज्ञानिक इस बात से पूरी तरह इन्कार कर रहे हैं कि छोटे भूकंप से निकलने वाली एनर्जी के कारण बड़े भूकंपों की आशंका खारिज हो जाती है। भूकंप की तीव्रता का एक अंक बढ़ने का मतलब है कि पहले से 30 गुना ज्यादा एनर्जी के झटके से रिलीज होना।
धरती के नीचे हो रही भूगर्भीय हलचल में भूकंप का आना तब तक एक सामान्य प्राकृतिक घटना की ही तरह है जब तक कि उससे जान माल की कोई हानि न हो। जब भूकंप की तीव्रता 6 से अधिक हो जाती है तो यह विनाश करने लगता है। वैज्ञानिकों के रिकॉर्ड बताते हैं कि साल भर में 5 से कम तीव्रता के भूकंपों की संख्या सैकड़ों में है।
आईआईटी वैज्ञानिकों के अनुसार रिक्टर स्केल पर मापी जाने वाली भूकंप की तीव्रता जमीन के भीतर से निकलने वाली एनर्जी का भी आकलन कराती है। आईआईटी के भूकंप विभाग के वैज्ञानिक प्रो. एमएल शर्मा ने बताया कि वैज्ञानिक भाषा में 6 तीव्रता के एक भूकंप से निकलने वाली एनर्जी 5 तीव्रता के 30 भूकंपों से निकलने वाली एनर्जी के बराबर होती है। यानी भूकंप की तीव्रता के एक अंक बढ़ने का मतलब है 30 गुना ज्यादा एनर्जी का रिलीज होना।
ऐसे में यदि सात तीव्रता का भूकंप आता है कि एनर्जी भी उसी अनुपात में बाहर निकलेगी। ऐसे में छोटे-छोटे भूकंपों से निकलने वाली एनर्जी से यह नहीं कहा जा सकता कि भूगर्भ में जमा एनर्जी का बड़ा हिस्सा रिलीज हो गया है। बड़े भूकंप की आशंका हमेशा बनी रहती है। लंबे अंतराल के बाद यह आशंका और भी प्रबल हो जाती है।