रानीखेत (अल्मोड़ा)। भिकियासैंण में हुई ताजा घटना ने 1980 में सल्ट के कफल्टा कांड की यादें ताजा कर दी हैं। कफल्टा में भी मंदिर के आगे से बरात गुजारने को लेकर हुए संघर्ष में अनुसूचित जाति के 14 लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई थी। उन्हें एक कमरे में बंद कर सवर्ण लोगों ने जिंदा जला दिया था। कुछ मह पूर्व सल्ट क्षेत्र में अनुसूचित जाति के दूल्हे को घोड़े से उतारने के मामले का विवाद भी सुर्खियों में रहा।
अंतरजातीय प्रेम विवाह करने के जुर्म में भिकियासैंण में अनुसूचित जाति के युवक की उसके ससुरालियों ने मिलकर नृशंस हत्या कर दी। घटना से लोगों को 1980 में हुए कफल्टा कांड की याद ताजा हो गई। तब लोहार जाति के श्याम प्रसाद की बरात कफल्टा गांव से होकर गुजर रही थी तो कुछ महिलाओं ने दूल्हे से कहा कि वह भगवान बदरीनाथ के प्रति सम्मान दिखाए और पालकी से उतर जाए। अनुसूचित जाति के लोगों ने ऐसा करने से मना कर दिया, इससे वहां विवाद बढ़ गया।
महिलाओं ने पुरुषों को आवाज दी जिसके बाद गांव में उन दिनों छुट्टी पर आये खीमानंद नामक एक फौजी ने जबरन पालकी को उलटा दिया। खीमानंद की इस हरकत से नाराज हुए अनुसूचित जाति के लोगों ने उन पर हमला बोल दिया और उनकी मृत्यु हो गई। घटना का बदला लेने के लिए सवर्ण एक हो गए। जान बचाने के लिए सभी बरातियों ने कफल्टा में रहने वाले इकलौते अनुसूचित जाति के नरी राम के घर पनाह ली और कुंडी भीतर से बंद कर दी।
सवर्णों ने घर को घेर लिया और उसकी छत तोड़ डाली। छत के टूटे हुए हिस्से से उन्होंने चीड़ का सूखा पिरूल, लकड़ी और मिट्टी का तेल भीतर डाल घर को आग लगा दी। घटना में छह लोग जिंदा जल गए। जो युवक खिड़कियों के रास्ते अपनी जान बचाने के लिए बाहर निकले उन्हें खेतों में दौड़ाया गया और लाठी-पत्थरों से उनकी हत्या कर दी गई। घटना में अनुसूचित जाति के 14 लोग मारे गए।
दूल्हा श्याम प्रसाद और कुछ बराती किसी तरह जान बचाकर वहां से भाग निकले। इस वीभत्स घटना के बाद तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को सल्ट आना पड़ा। 1997 में न्याय हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने 16 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई, जिसमें से तीन लोगों की मौत हो चुकी थी। अब भिकियासैंण की घटना ने समाज में जातीय भेद के चलते हुई उस घटना की यादें फिर ताजा कर दी हैं।