
देहरादून | देहरादून की एक अदालत ने दुष्कर्म की धमकी और दुष्कर्म की कोशिश के मामले में आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पीड़िता और उसके पति के बयानों में इतने विरोधाभास हैं कि पूरे मुकदमे की नींव ही हिल गई। साथ ही, पुलिस जांच में भी गंभीर लापरवाहियां पाई गईं, जिसके चलते अभियोजन पक्ष आरोपी का दोष साबित नहीं कर सका। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रजनी शुक्ला की अदालत ने 13 अक्तूबर को यह फैसला सुनाया। मामला वर्ष 2022 का है, जब एक महिला ने स्थानीय थाना पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि एक व्यक्ति ने उसे धमकी दी कि यदि उसका पति घर नहीं आया तो वह रात में घर आकर उसके साथ दुष्कर्म करेगा। महिला ने आरोप लगाया था कि अगले दिन आरोपी ने उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की।
पुलिस ने शिकायत दर्ज कर आरोपी दिनेश कुमार के खिलाफ छेड़खानी, धमकी देने और दुष्कर्म की कोशिश के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था। जांच पूरी होने के बाद पुलिस ने चार्जशीट अदालत में दाखिल की थी। मुकदमे की सुनवाई के दौरान अदालत ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान ध्यानपूर्वक सुने। अदालत ने पाया कि पीड़िता और उसके पति के बयान आपस में मेल नहीं खाते। घटना के तुरंत बाद किसने किसे फोन किया — इस साधारण से प्रश्न पर भी दोनों के जवाब अलग-अलग थे। अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने जांच के दौरान महिला जांच अधिकारी नियुक्त नहीं की, जो कि ऐसे मामलों में आवश्यक होता है।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि आरोपी ने धमकी दी या दुष्कर्म की कोशिश की। पीड़िता की ओर से दिए गए बयानों में इतनी असंगतियां और विरोधाभास थे कि उन पर भरोसा करना मुश्किल था। अदालत ने माना कि पूरी कहानी “यकीन से परे” लगती है। फैसले में कहा गया कि अभियोजन पक्ष आरोपी की दोषसिद्धि के लिए आवश्यक प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका। भारतीय साक्ष्य अधिनियम के सिद्धांत के अनुसार, जब तक अपराध संदेह से परे साबित न हो, तब तक आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने इसी सिद्धांत के आधार पर आरोपी को लाभ का संदेह (Benefit of Doubt) देते हुए बरी करने का आदेश दिया।
अदालत ने पुलिस जांच की कमजोरियों पर भी टिप्पणी की और कहा कि यदि जांच निष्पक्ष और संवेदनशील तरीके से की जाती तो शायद सच्चाई सामने आ सकती थी। इस मामले में जांच की लापरवाही और गवाहों के असंगत बयान, दोनों ही अभियोजन पक्ष के लिए भारी साबित हुए। इस फैसले के बाद एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं कि संवेदनशील अपराधों की जांच में पुलिस को कितनी गंभीरता से काम करने की जरूरत है। दुष्कर्म जैसे मामलों में यदि जांच में लापरवाही बरती जाती है या बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते, तो अदालत में दोषसिद्धि मुश्किल हो जाती है। फिलहाल, अदालत के आदेश के बाद आरोपी दिनेश कुमार को रिहा कर दिया गया है।




