
देहरादून। हालिया अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाओं ने न केवल पहाड़ की भौतिक संरचना को तहस-नहस किया बल्कि लोगों की मानसिक स्थिति पर भी गहरा असर छोड़ा है। आपदा पीड़ितों में बेचैनी, अनिद्रा, घबराहट और अवसाद जैसे लक्षण उभर रहे हैं। मालदेवता पीएचसी में अब तक 150 से अधिक लोग मानसिक परामर्श के लिए पहुंच चुके हैं।
श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. मोहित सैनी ने बताया कि कई लोग पीटीएसडी (पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) से गुजर रहे हैं। इनमें रात को बार-बार चौंककर उठना, भयावह मंजर याद आना और दिल की धड़कन तेज होना जैसे लक्षण सामने आए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति तीन-चार साल तक बनी रह सकती है।
आपदा प्रभावित परिवारों में घर, खेत, बाग, आजीविका और अपनों के खोने से गहरी उदासी और असुरक्षा की भावना पनपी है। कई लोग रिश्तेदारों के घरों में शरण ले रहे हैं। उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग में बीपी और शुगर के मरीजों की संख्या भी तनाव के कारण बढ़ी है।
व्यक्तिगत कहानियां भी बेहद दर्दनाक हैं –
- धराली गांव के भूपेंद्र पंवार का घर, होटल और सेब का बगीचा बह गया, जिससे उनकी तबीयत और बिगड़ गई।
- कर्णप्रयाग के महिपाल सिंह गुसाईं की बेटी की शादी आपदा के बीच होनी थी, लेकिन सैलाब में घर और सामान बह जाने से पत्नी को सदमा लगा।
- थराली और चेपड़ों बाजार में दुकानों व वाहनों का मलबे में दबना लोगों को आर्थिक व मानसिक रूप से तोड़ गया।
- उत्तरकाशी के उमेश पंवार का घर, बाग, होम स्टे और डेयरी बह गए। वहीं उनके पड़ोसी अजय नेगी ने अपने भाई और मित्र को आपदा में खो दिया।
डॉक्टरों का कहना है कि पीड़ितों को परामर्श, सामुदायिक सहयोग और भावनात्मक सहारे की सख्त जरूरत है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि लोग अपनी पीड़ा परिवार और दोस्तों से साझा करें, योग और सामूहिक प्रार्थना जैसी गतिविधियों से मानसिक संतुलन बनाए रखें।