
देहरादून | उत्तराखंड में हर साल गर्मियों के दौरान जंगल की आग बड़ी चुनौती बनती है। इस बार गर्मी के मौसम में वनाग्नि से अपेक्षाकृत राहत जरूर मिली, लेकिन मानसून की भारी बारिश ने वनों को गंभीर क्षति पहुंचाई। प्रदेशभर में उफनाए नदी-गदेरों और भू-कटाव ने न केवल वन क्षेत्र को प्रभावित किया, बल्कि सड़क, पैदल और अश्व मार्गों, वन मोटर मार्गों और वन चौकियों को भी नुकसान पहुंचाया है।
वन विभाग के अनुसार, इस वर्ष जुलाई से सितंबर तक लगातार हुई बारिश से कई क्षेत्रों में आपदा जैसी स्थिति बनी। नदियों और गदेरों में बहकर आए पेड़-पौधे और भू-कटाव से उखड़े वृक्ष अब वनों के नुकसान का हिस्सा माने जा रहे हैं। विभाग ने प्रभावित क्षेत्रों में वृक्षों की गिनती और क्षति का आकलन शुरू कर दिया है।
वन क्षेत्र में भू-कटाव और बर्बादी
मानसून की बारिश से तराई और पर्वतीय इलाकों में कई जगहों पर प्लांटेशन पूरी तरह नष्ट हो गया।
- तराई केंद्रीय वन प्रभाग, रुद्रपुर रेंज में पौधरोपण जलभराव से चौपट हो गया।
- चंपावत वन प्रभाग के बूम रेंज में लगाए गए रुद्राक्ष के पौधे नष्ट हो गए।
- तराई पश्चिम वन प्रभाग के बन्नाखेड़ा रेंज में चूनाखान नाले ने भारी भू-कटाव किया।
- जौलासाल रेंज में कालेरिया नदी का जलस्तर बढ़ने से जंगल प्रभावित हुए।
- गड़प्पू क्षेत्र में बौर नदी ने जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया।
- हरिद्वार के श्यामपुर और चिड़ियापुर रेंज में भी भू-कटाव और मार्ग क्षति दर्ज की गई।
उत्तरकाशी में बड़ा नुकसान
धराली और हर्षिल के आरक्षित वन क्षेत्र में आपदा से करीब 100 से 120 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ है। गंगोत्री रेंज अधिकारी यशवंत चौहान ने बताया कि इस आपदा में 1500 से 1800 छोटे-बड़े पेड़ क्षतिग्रस्त हुए हैं। यह अभी केवल प्रारंभिक आकलन है। जल्द ही स्थलीय निरीक्षण कर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी। प्रभावित क्षेत्रों में एक बड़े प्लांटेशन को भी नुकसान पहुंचा है।
वन विभाग की चुनौतियां
वन चौकियों, कार्यालय परिसरों, चैक डैम, अमृत सरोवर और सिंचाई पाइपलाइनों को भी बारिश ने नुकसान पहुंचाया है। मानसून के दौरान लगातार आपदा आने से वन विभाग को दोहरी चुनौती झेलनी पड़ रही है—एक ओर जंगल की आग से बचाव, और दूसरी ओर बारिश से हुए नुकसान का आकलन और पुनर्वास।
जनपदवार वन क्षेत्र की स्थिति
भारतीय वन सर्वेक्षण की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड का कुल वनावरण 24,303.83 वर्ग किमी है, जबकि 2021 की तुलना में इसमें 1.3 वर्ग किमी की कमी आई है। सबसे अधिक वनावरण पौड़ी (69.06%) और पिथौरागढ़ (67.93%) जिलों में दर्ज किया गया है, जबकि सबसे कम उधमसिंह नगर (19.44%) में है। गर्मियों में जंगल की आग से मिली राहत के बाद मानसून की बारिश ने राज्य के वनों पर कहर बरपाया। भू-कटाव, प्लांटेशन की बर्बादी और पेड़ों के उखड़ने से न केवल वन संपदा को बल्कि स्थानीय जैव विविधता और बुनियादी ढांचे को भी भारी क्षति हुई है। आने वाले समय में इन नुकसानों की भरपाई और संरक्षण वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती होगी।