
देहरादून | यूकेएसएसएससी (उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग) की स्नातक स्तरीय परीक्षा एक बार फिर विवादों के घेरे में है। परीक्षा का पेपर बाहर आने की घटना ने न केवल अभ्यर्थियों, बल्कि पूरे आयोग और पुलिस तंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है। यह मामला अब तक पहेली बना हुआ है कि जब मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर पूरी तरह प्रतिबंध था और परीक्षा केंद्र पर जैमर लगे हुए थे, तब भी प्रश्नपत्र की तस्वीरें बाहर कैसे पहुंचीं?
आयोग का रुख: परीक्षा रद्द नहीं होगी
पेपर लीक की खबर सामने आने के बाद यह आशंका बढ़ गई थी कि कहीं पूरी परीक्षा ही रद्द न कर दी जाए। हालांकि आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह मामला सिर्फ एक परीक्षा केंद्र और एक छात्र से जुड़ा है। इसलिए इसे “पेपर लीक” की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। आयोग ने साफ कहा है कि परीक्षा रद्द नहीं होगी, लेकिन आरोपी छात्र खालिद का परिणाम रोक दिया जाएगा।
सवालों के घेरे में व्यवस्थाएं
जांच में यह स्पष्ट हो चुका है कि परीक्षा केंद्र पर लगाए गए जैमर काम नहीं कर रहे थे। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि जब मोबाइल फोन प्रतिबंधित थे, तो परीक्षा कक्ष के भीतर तस्वीर कैसे खींची गई? क्या अभ्यर्थी खालिद अकेले इस खेल में शामिल था या उसके पीछे कोई संगठित गिरोह भी काम कर रहा था?
सभी अभ्यर्थियों को केंद्र में प्रवेश से पहले सख्त चेकिंग से गुजरना पड़ा था। बैग, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक घड़ी जैसी वस्तुएं अंदर ले जाने की अनुमति नहीं थी। फिर भी खालिद किसी तरह मोबाइल भीतर ले गया और उसने प्रश्नपत्र की फोटो खींचकर बाहर भेज दी। यह तथ्य आयोग की आंतरिक जांच रिपोर्ट में भी स्वीकार किया गया है।
आरोपी खालिद अब भी फरार
पेपर भेजने का आरोपी अभ्यर्थी खालिद अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। उसकी तलाश में पुलिस की कई टीमें सक्रिय हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या उसने अकेले यह काम किया या उसे परीक्षा केंद्र के कर्मचारियों से मदद मिली?
आयोग का बयान
आयोग के सचिव डॉ. शिव कुमार बरनवाल ने कहा—
“यह संभव है कि खालिद को किसी और ने मदद की हो। अभी तक जांच पूरी नहीं हुई है, इसलिए किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। पुलिस की पूछताछ से ही स्थिति साफ हो सकेगी।”
पुलिस जांच से खुलेंगे राज
फिलहाल पूरा मामला अब पुलिस की तफ्तीश पर टिका हुआ है। यह जांच यह साबित करेगी कि पाबंदियों के बावजूद मोबाइल कैसे भीतर पहुंचा और किसने खालिद को सहारा दिया। इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर से उत्तराखंड की परीक्षाओं की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।