
हरियाणा- राजस्थान सीमा पर सक्रिय भ्रूण लिंग जांच रैकेट का भंडाफोड़ एक बार फिर हमारे समाज की दोहरी मानसिकता और सरकारी तंत्र की असफलता को उजागर करता है। डिकॉय ग्राहक की मदद से पकड़े गए आरोपी केवल कानून के अपराधी नहीं हैं, बल्कि वे उस सामाजिक मानसिकता के प्रतिनिधि हैं जो बेटियों को बोझ समझती है।
पीसीपीएनडीटी एक्ट (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques Act) जैसी सख्त क़ानूनी व्यवस्था के बावजूद यदि सरकारी अस्पताल का कर्मचारी ही इस अपराध में संलिप्त हो, तो यह व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह है। यह मामला इस ओर भी इशारा करता है कि नियम केवल काग़ज़ों में हैं और ज़मीनी सख्ती नदारद है। भ्रूण हत्या केवल एक व्यक्ति का अपराध नहीं, यह एक सामूहिक सामाजिक बीमारी है। यह वह मानसिकता है जो एक कन्या के जन्म से पहले ही उसकी मौत सुनिश्चित कर देती है। 26 हज़ार की रकम लेकर गर्भ में पल रहे बच्चे का भविष्य तय कर देना, न केवल अपराध है, बल्कि मानवता के प्रति अपराध है।
इस पूरे प्रकरण में प्रशासन ने तत्परता दिखाई, पर यह सतही कार्रवाई तब तक अधूरी है जब तक इस गोरखधंधे की जड़ों को पूरी तरह नष्ट न किया जाए। गिरोह के अन्य सदस्यों की पहचान, फंडिंग नेटवर्क और सामाजिक मिलीभगत को भी उजागर करना ज़रूरी है। अब समय आ गया है कि भ्रूण लिंग जांच को केवल कानून की नज़र से नहीं, सामाजिक आंदोलन के रूप में देखा जाए। शिक्षा, प्रचार और कठोर दंड तीनों का समन्वय ज़रूरी है ताकि किसी भी ‘रवि सिंह’ को दोबारा ऐसा करने की हिम्मत न हो।