देहरादून। जनपद में उच्च और मध्य हिमालय क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक झीलों की गहराई और क्षेत्रफल की प्रशासन, वन विभाग और जिला आपदा प्रबंधन के पास कोई जानकारी नहीं है। वर्ष 2002 से जनपद में मौजूद बधाधीताल, देवरियाताल और वासुकीताल की गहराई की माप और क्षेत्रफल के माप की मांग हो रही है। पर, इस दिशा में बीते 22 वर्षों से जिला व शासन स्तर पर कोई कार्रवाई तो दूर कार्ययोजना तक नहीं बन पाई है।
उत्तराखंड से लगे हिमालय के उच्च व मध्य क्षेत्र में छोटी-बड़ी सैकड़ों झीलें होने की बात भू-वैज्ञानिक करते आ रहे हैं। जून 2013 की केदारनाथ आपदा का प्रमुख कारण भी चोराबाड़ी ताल को माना गया था। तब, ताल फूटने से पानी व मलबे के सैलाब से केदारपुरी, गौरीकुंड, सोनप्रयाग से लेकर अगस्त्यमुनि तक व्यापक तबाही हुई थी।
वहीं, फरवरी 2021 में जनपद चमोली में ऋषिगंगा में ग्लेशियर टूटने से भी भारी नुकसान हुआ था। इसके बाद, भू-वैज्ञानिकों ने माना था कि हिमालय क्षेत्र में झीलें हैं, जो कभी भी बड़े नुकसान का कारण बन सकती हैं, इन्हीं झीलों में हिमालय के उच्च व मध्य क्षेत्र से लगे रुद्रप्रयाग जनपद के ऊखीमठ और जखोली विकासखंड में वासुकीताल, देवरियाताल और बधाणीताल भी मौजूद हैं।
इन प्राकृतिक तालों की गहराई और क्षेत्रफल की माप को लेकर अभी तक शासन व जिला स्तर पर कोई अध्ययन नहीं हो पाया है। जबकि स्थानीय ग्रामीण, क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि और भू-वैज्ञानिक लंबे समय से इन तालों की माप कर जानकारी सार्वजनिक करने की मांग करते आ रहे हैं। ऊखीमठ निवासी व भू-विज्ञान के जानकार बलवीर सिंह धिरवाण का कहना है कि वर्ष 2002 से वह वासुकीताल, देवरियाताल और बधाणीताल की गहराई और क्षेत्रफल की मात की मांग कर रहे हैं।
इस संबंध में जिला, राज्य और प्रधानमंत्री कार्यालय तक पत्राचार किया जा चुका है, पर कहीं से भी जबाव नहीं मिला है। बताया कि इन तालों का आंतरिक विस्तार कितना है, इसकी जानकारी होना जरूरी है। वासुकीताल, केदारनाथ से आठ किमी ऊपर हिमालय की तलहटी पर स्थित है। बधाणीताल, आबादी क्षेत्र में है और देवरियाताल भी सारी गांव से कुछ किमी की दूरी पर है।
वाडिया संस्थान से सेवानिवृत्त ग्लेशियर विशेषज्ञ डा. डीपी डोभाल का कहना है कि हिमालय के उच्च व मध्य क्षेत्र में हजारों की संख्या में अलग-अलग श्रेणी के ताल है, जिसमें कुछ ग्लेशियर के किनारे व कुछ ग्लेशियर के ऊपर स्थित हैं। डोभाल के अनुसार, सभी तालों का अध्ययन कर एक डेटा तैयार करना जरूरी है। जिससे किसी भी प्रकार की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा के लिए उचित योजना बन सके।
केदारनाथ से चार किमी ऊपर स्थित चोराबाउ़ी व कंपनेनियन ग्लेशियर के ऊपर छह से 10 सुप्रा ताल हैं, जो बनते व टूटते रहते हैं। 20 वर्ष से अधिक समय तक केदारनाथ सहित हिमालय के अन्य क्षेत्रों में ग्लेयिशर व झीलों का अध्ययन करने वाले ग्लेशियर विशेषज्ञ डा. डीपी डोभाल का कहना है कि, सुप्रा ताल सबसे सुरक्षित होते हैं। प्रतिवर्ष बर्फबारी होने के हिसाब से यह टूटते व बनते रहते हैं। केदारनाथ से हिमालय क्षेत्र में मौजूद सुप्रा झील सुरक्षित हैं।