
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के समक्ष शुक्रवार को पेश एक अनूठे और पेचीदा मामले ने अदालत को भी सोच में डाल दिया। धनुली देवी बनाम खड़क सिंह के विवाद में परिवार न्यायालय द्वारा पारित भरण-पोषण आदेश को उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है तथा मामले को पुनः विस्तृत जांच के लिए पारिवारिक न्यायालय को लौटाया है। न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की अदालत ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि मुकदमेबाजी के रिकॉर्ड में एक ही नाम के दो अलग-अलग व्यक्तियों के होने का दावा सामने आया है और फैमिली कोर्ट ने तथ्यों की गहन पड़ताल किए बिना आदेश पारित कर दिया था।
मामले का मूल आशय यह है कि खड़क सिंह के खिलाफ प्रदान किए गए भरण-पोषण के आदेश को चुनौती दी गई थी। याची पक्ष की ओर पेश महिला ने अदालत में दावा किया कि वह खड़क सिंह की पत्नी है और उसके दो नाबालिग नहीं होने पर भी एक पुत्र तथा एक पुत्री हैं जो दोनों विवाहिता हैं। महिला ने यह भी कहा कि उसकी पुत्री का कन्यादान खड़क सिंह ने ही किया था, इस तरह वह वैवाहिक संबंध और परिवारिक प्रत्यक्षता का संकेत दे रही थी। दूसरी ओर प्रतिवादी खड़क सिंह ने स्पष्ट रूप से कोर्ट में कहा कि उनकी असली पत्नी का 2010 में निधन हो चुका है और जो महिला भरण-पोषण हेतु याचिका लेकर आई है, वह वास्तविक पत्नी नहीं है। सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष एक और पहचान खुलकर आई — कोर्ट में उपस्थित वह महिला कमला देवी ठहरी, जो कभी खड़क सिंह के घर में मेड रह चुकी थी। कोर्ट को यह आशंका हुई कि कमला देवी पेंशन या किसी धनराशि के लिए स्वयं को धनुली देवी बताकर झूठा दावा कर रही है।
उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट द्वारा किए गए तथ्यान्वेषण को अपर्याप्त करार दिया और कहा कि इस तरह जटिल पेचीदा विवाद में दस्तावेजी साक्ष्यों, जन्म-प्रमाणपत्रों, विवाहों के रिकॉर्ड, गांव-पंचायत या स्थानीय अभिलेखों तथा किसी भी विश्वसनीय गवाह के बयान का गहन परीक्षण अनिवार्य है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए कि दोनों पक्षों को अपने-अपने साक्ष्य पेश करने का पूरा अवसर दिया जाए और तथ्यात्मक पहलुओं की बार-बार तथा निस्तारपूर्ण जांच होनी चाहिए। इसलिए हाईकोर्ट ने वर्ष 2025 का वह भरण-पोषण आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि मामले की नई सुनवाई पारिवारिक न्यायालय में की जाए जहाँ विस्तृत प्रमाणिकता की पड़ताल की जाएगी।
न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि यदि आवश्यक हुआ तो स्थानीय पंजीय कार्यालयों, पंचायत या समाज के अन्य विश्वसनीय अभिलेखों से मिलान कर पहचान सर्वप्रथम प्रमाणित की जाए, क्योंकि केवल मौखिक दावों पर निर्भर रहकर भरण-पोषण जैसे संवेदनशील आदेश जारी करना अनुचित होगा। इस प्रकार अदालत ने पक्षों को सबूत जुटाने और प्रस्तुत करने का निर्देश देते हुए प्रकरण को वापस भेज दिया है ताकि निष्पक्ष व ठीक प्रकार से परीक्षण कर सच्चाई का पता लगाया जा सके।
यह मामला स्थानीय समाज में भी चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि इसमें न केवल आर्थिक दावे हैं बल्कि पारिवारिक पहचान, शादी-विवाह और सामाजिक दायित्वों के प्रमाणिक दस्तावेजों की अपरिहार्य भूमिका भी उभरकर आई है। कोर्ट के निर्देशों के बाद अब अपेक्षा की जा रही है कि पारिवारिक न्यायालय मामले की व्यापक जांच करके यह तय करेगा कि वास्तविकता क्या है और यदि झूठा दावा सिद्ध होता है तो उसके अनुसार सख्त कार्रवाई की जाएगी।




