
देहरादून| उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर दून लाइब्रेरी में आयोजित एक विशेष गोष्ठी में राज्य आंदोलन की मूल अवधारणा और आज की स्थिति पर विस्तृत चर्चा की गई। स्वतंत्रता सेनानी कल्याण समिति के संरक्षक सुशील त्यागी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य के गठन का मूल उद्देश्य पहाड़ों के अंधेरों में विकास का उजाला पहुंचाना था। उन्होंने कहा कि यदि तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने बाधा न डाली होती, तो यह राज्य आज़ादी के तुरंत बाद 1956 में ही अस्तित्व में आ सकता था।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने राज्य के विकास, पर्यावरण संरक्षण और रोजगार के नए दृष्टिकोणों पर जोर दिया। डॉक्टर राकेश डंगवाल ने कहा कि उत्तराखंड के विकास का अर्थ तभी सार्थक होगा जब आर्थिक प्रगति, सामाजिक विकास और पर्यावरणीय संतुलन एक साथ चलें और इनका लाभ पहाड़ों के आम नागरिक तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि राज्य निर्माण की भावना तभी पूर्ण होगी जब इसका असर ग्रामीण जीवन में दिखाई दे।
गवर्नमेंट पेंशनर्स वेलफेयर संगठन के चौधरी ओमवीर सिंह ने स्थानीय रोजगार पर बल देते हुए कहा कि पहाड़ी उत्पादों की ब्रांडिंग, जैविक खेती, हर्बल उद्योग और ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देकर युवाओं को घर के पास ही काम के अवसर दिए जा सकते हैं। इससे पलायन की गंभीर समस्या पर भी अंकुश लगेगा।
संयुक्त नागरिक संगठन के अवधेश शर्मा ने सुझाव दिया कि पलायन रोकने के लिए “घोस्ट विलेज रीवाइवल मिशन” जैसी पहलों को और प्रभावी रूप से लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ग्रामीण शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और डिजिटल कनेक्टिविटी को राज्य सरकार की प्राथमिकता में शामिल किया जाए, ताकि पहाड़ी जीवन आधुनिक सुविधाओं से जुड़ सके।
‘अपना परिवार’ संस्था के पुरुषोत्तम भट्ट ने कहा कि शिक्षा को स्किल और इनोवेशन से जोड़ा जाना आवश्यक है, ताकि युवा केवल नौकरी तलाशने वाले न रहें बल्कि नए अवसरों के सृजनकर्ता बनें। उन्होंने कहा कि राज्य के युवाओं में अपार क्षमता है, बस दिशा और संसाधन की जरूरत है।
वक्ताओं में दिनेश जोशी ने विशेष रूप से पर्यावरणीय चेतना को नीति का आधार बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का भूगोल आपदाओं के प्रति संवेदनशील है, इसलिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आपदा प्रबंधन ढांचा तैयार किया जाना चाहिए।
गोष्ठी में यह आम राय बनी कि उत्तराखंड की लोकसंस्कृति और लोकमूल्यों का पुनर्जागरण किया जाए। “पहाड़ की पहचान, उत्तराखंड की शान” केवल एक नारा नहीं, बल्कि नीति का हिस्सा बने — यह भावना सभी वक्ताओं के शब्दों में दिखाई दी।
प्रेषक:
सुशील त्यागी
सचिव, संयुक्त नागरिक संगठन, देहरादून





