
देहरादून। देहरादून के थानों क्षेत्र स्थित लेखक गांव में आयोजित स्पर्श हिमालय महोत्सव का तीसरा और अंतिम दिन आध्यात्म, योग, नाड़ी विज्ञान और पर्यटन की चर्चाओं से सराबोर रहा। बुधवार को आयोजित इस समापन सत्र में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए और दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। महोत्सव में बड़ी संख्या में योगाचार्य, विद्वान, पर्यटक, और स्थानीय नागरिक उपस्थित रहे।
मुख्यमंत्री धामी ने अपने संबोधन में कहा कि हिमालय केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि यह भारत की संस्कृति, आस्था और जीवनदर्शन का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजन प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाते हैं और उत्तराखंड को वैश्विक मंच पर ‘योग भूमि’ के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस अवसर पर आयोजित सत्रों में योग और नाड़ी विज्ञान पर विशेष मंथन हुआ। नाड़ी रोग विशेषज्ञ लक्ष्मी नारायण जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मानव शरीर में अधिकांश रोग मस्तिष्क से उत्पन्न होते हैं और उनके समाधान का स्रोत भी वहीं निहित है। उन्होंने कहा कि मन और शरीर के बीच गहरे संबंध को समझकर व्यक्ति रोगमुक्त जीवन पा सकता है। उन्होंने बताया कि आज के युग में अनियमित आहार-विहार, अनिद्रा और तनाव के कारण रोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन यदि लोग संयमित जीवनचर्या और संतुलित दिनचर्या अपनाएं तो अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है।
जोशी ने आगे कहा कि रोगों की जड़ हमारे अवचेतन मन में होती है, इसलिए मन को शुद्ध और सकारात्मक बनाए रखना आवश्यक है। अन्य वक्ताओं ने भी योग, ध्यान और मानसिक संतुलन के महत्व पर अपने विचार साझा किए। कार्यक्रम के दौरान पर्यावरण संरक्षण, हिमालय क्षेत्र की जैव विविधता और सतत पर्यटन पर भी विचार-विमर्श हुआ। वक्ताओं ने कहा कि हिमालय केवल प्राकृतिक संपदा का स्रोत नहीं, बल्कि यह हमारे आध्यात्मिक जीवन का आधार भी है।
महोत्सव के अंत में मुख्यमंत्री धामी ने आयोजकों की सराहना करते हुए कहा कि “स्पर्श हिमालय महोत्सव” न केवल हिमालयी संस्कृति को जीवंत कर रहा है, बल्कि यह योग, विज्ञान और पर्यावरण के संगम का सुंदर उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में यह आयोजन और अधिक व्यापक रूप से आयोजित होगा तथा इसमें देश-विदेश से विद्वानों की भागीदारी बढ़ेगी। कार्यक्रम का समापन सामूहिक प्रार्थना और योग साधना सत्र के साथ हुआ, जिसमें प्रतिभागियों ने हिमालय की ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।




