
देहरादून। पहाड़ों की धरती उत्तराखंड भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील मानी जाती है। पिछले 49 वर्षों के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं। वर्ष 1975 से 2024 तक राज्य में कुल 447 बार धरती डोली है। इनमें से सबसे अधिक भूकंप रिक्टर स्केल पर तीन से चार की तीव्रता वाले दर्ज किए गए हैं। यह तीव्रता इतनी होती है कि इसे सामान्य लोग भी महसूस कर लेते हैं, मानो कोई भारी वाहन पास से गुजर गया हो। हालांकि राज्य में सात से अधिक तीव्रता वाला कोई भूकंप नहीं आया है, लेकिन लगातार आ रहे हल्के झटके इस बात का संकेत हैं कि पहाड़ की धरती भीतर ही भीतर कितनी सक्रिय है।
भूकंप के आंकड़े
आपदा प्रबंधन विभाग के पास उपलब्ध डेटा के अनुसार, 1975 से अब तक कुल 447 भूकंप आए हैं। इनमें रिक्टर स्केल पर तीन से चार की तीव्रता वाले सबसे अधिक रहे। इसके अलावा चार से पांच रिक्टर स्केल वाले 90, पांच से छह वाले 34 और छह से सात रिक्टर स्केल के तीन भूकंप आए। सात से अधिक तीव्रता का कोई बड़ा भूकंप इन वर्षों में रिकॉर्ड नहीं हुआ है।
आपदा प्रबंधन विभाग की तैयारी
राज्य सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग इस खतरे को लेकर सतर्क हैं। विभाग ने भूकंप जोखिम मूल्यांकन और शमन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) को 153 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा है। इस योजना के तहत राज्य के 10 उच्च प्राथमिकता वाले शहरों — देहरादून, मसूरी, हरिद्वार, ऋषिकेश, उत्तरकाशी, गोपेश्वर, चमोली, जोशीमठ, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग और अल्मोड़ा — का राज्यव्यापी भूकंपीय जोखिम आकलन किया जाएगा।
आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन के अनुसार, “भूकंप को लेकर कई स्तर पर काम चल रहा है। इसमें जागरूकता बढ़ाना, मॉक ड्रिल कराना, सेंसर की संख्या बढ़ाना और पुराने व महत्वपूर्ण भवनों को भूकंप सुरक्षा के लिहाज से मजबूत करना शामिल है। साथ ही, भविष्य में बनने वाले भवनों में भूकंपरोधी मानकों का पालन अनिवार्य होगा।”
विशेषज्ञ संस्थानों को जिम्मेदारी
इस बड़े प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, सीबीआरआई रुड़की और आईआईटी रुड़की को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई है। वाडिया संस्थान भू-विज्ञान और भूकंपीय गतिविधियों के अध्ययन में मदद करेगा, जबकि सीबीआरआई और आईआईटी रुड़की निर्माण संरचनाओं को भूकंपरोधी बनाने की दिशा में काम करेंगे।
हाल के भूकंप
पिछले कुछ महीनों में भी उत्तराखंड में धरती हिली है। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के अनुसार, 16 अगस्त 2025 को बागेश्वर में 2.9 तीव्रता का भूकंप आया था। इसके बाद 12 सितंबर को पिथौरागढ़ में 3.1 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया। मात्र पांच दिन बाद पिथौरागढ़ जिले में फिर 2.8 तीव्रता का झटका महसूस हुआ। अक्तूबर के पहले सप्ताह में भी पिथौरागढ़ में 3.1 तीव्रता का भूकंप आया।
सतर्कता ही बचाव
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड के भौगोलिक हालात और टेक्टोनिक गतिविधियां इसे भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील बनाती हैं। इसीलिए छोटे-छोटे झटके बार-बार आते रहते हैं। भले ही अब तक बड़े पैमाने पर विनाशकारी भूकंप नहीं आया हो, लेकिन भविष्य में इसकी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए जरूरी है कि सरकार और आम लोग दोनों स्तर पर जागरूक और तैयार रहें।
उत्तराखंड में बार-बार आने वाले इन भूकंपों ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पहाड़ की धरती किसी बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही है। सरकार की ओर से भेजा गया 153 करोड़ का प्रस्ताव और संस्थानों की सक्रियता आने वाले समय में राज्य को भूकंप के खतरे से सुरक्षित बनाने में कितनी मदद करेगी, यह समय ही बताएगा।