
उत्तरकाशी/रुड़की | उत्तरकाशी के धराली गांव में मंगलवार को आई तबाही महज एक प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन, वैज्ञानिक लापरवाही और विकास की अंधी दौड़ का प्रत्यक्ष उदाहरण बनकर उभरी। खीरगंगा में बादल फटने से उठे सैलाब ने गांव को तहस-नहस कर दिया। प्रसिद्ध कल्पकेदार मंदिर बह गया, बाजार और होटल मलबे में समा गए और दर्जनों लोग लापता हो गए। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इस आपदा का पैटर्न 2013 की केदारनाथ त्रासदी से मिलता-जुलता है।
पश्चिमी विक्षोभ बना तबाही की वजह: IIT रुड़की का खुलासा
आईआईटी रुड़की के हाइड्रोलॉजी विभाग के वैज्ञानिक प्रो. अंकित अग्रवाल के अनुसार, इस आपदा की जड़ में भूमध्य सागर से उठे पश्चिमी विक्षोभ हैं, जो हिमालय से टकराकर अत्यधिक वर्षा और बादल फटने जैसी घटनाओं का कारण बनते हैं। यही पैटर्न 2013 में केदारनाथ में देखा गया था, और अब उत्तरकाशी में पुनरावृत्ति हुई।
उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते अब पश्चिमी विक्षोभ और मानसून पूर्व की ओर शिफ्ट हो रहे हैं, जिससे जून से अगस्त के बीच हिमालयी क्षेत्र में असामान्य वर्षा और आपदाओं की आशंका बढ़ गई है।
20 सेकंड में बर्बाद हो गया धराली गांव
मंगलवार दोपहर करीब 1:50 बजे, धराली गांव के ऊपर अचानक बादल फटा। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, महज 20 सेकंड में खीरगंगा नदी का पानी और मलबा गांव के मुख्य बाजार में घुस गया। लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागे, लेकिन बाढ़ और मलबे की तीव्रता इतनी अधिक थी कि कई लोग बह गए। इस आपदा में प्रसिद्ध कल्पकेदार मंदिर, कई होटल, दुकानें, मकान और सेब के बागान जमींदोज हो गए। बाजार का अस्तित्व मानो मिट गया।
सेना का कैंप और हैलीपैड भी तबाह
धराली में सेना का अस्थायी कैंप और पास का हेलिपैड भी तबाही की चपेट में आ गए। कई चौकियां, बंकर और टेंट मलबे में दब गए हैं। सेना के कुछ जवानों के लापता होने की आशंका है। हालांकि, अब तक आधिकारिक तौर पर किसी सैनिक के हताहत होने की पुष्टि नहीं हुई है। हर्षिल घाटी में भी तीन जगह बादल फटने की खबर है।
130 लोगों का रेस्क्यू, 70 से ज्यादा अब भी लापता
जिला प्रशासन के अनुसार, अब तक 130 लोगों को रेस्क्यू किया जा चुका है। लेकिन करीब 70 लोग अब भी लापता हैं। प्रशासन ने अनुमान जताया है कि 20 से 30 होटल, दुकानें और घर मलबे में समा चुके हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी और स्थानीय पुलिस की टीमें राहत कार्य में जुटी हुई हैं। लेकिन लगातार बारिश और सड़क मार्ग क्षतिग्रस्त होने के कारण बचाव अभियान में बाधा आ रही है।
हिमालयी क्षेत्रों के लिए खतरे की घंटी
प्रो. अग्रवाल का कहना है कि अब पश्चिमी विक्षोभ का पैटर्न बदल रहा है। ये विक्षोभ अब मध्य भारत से हिमालय की ओर खिंच रहे हैं, और भारी नमी लेकर आते हैं। परिणामस्वरूप हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में लगातार अत्यधिक वर्षा और बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं। हिमाचल में सितंबर 2023 में भी इसी पैटर्न के चलते तबाही मची थी। पश्चिमी विक्षोभ अब अक्तूबर-दिसंबर के बजाय जून-अगस्त में ही सक्रिय हो रहे हैं। यह पैटर्न प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से बेहद खतरनाक संकेत है।
व्यावसायिक क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित
स्थानीय लोगों का कहना है कि नदी का बहाव यदि बस्ती की ओर मुड़ता, तो जनहानि कहीं अधिक हो सकती थी। लेकिन पानी बाजार की ओर मुड़ा, जिससे व्यावसायिक इमारतों, होटल और रेस्टोरेंट्स को सबसे अधिक नुकसान हुआ। मलबा दो बार आया — एक बार पानी के साथ और फिर कुछ देर रुककर। इस अंतराल ने कुछ लोगों को जान बचाने का मौका दिया, लेकिन अधिकतर संपत्तियां नहीं बच सकीं।
राहत के लिए केंद्र से मांगे गए हेलिकॉप्टर
उत्तराखंड सरकार ने केंद्र सरकार और वायुसेना से दो एमआई और एक चिनूक हेलिकॉप्टर की मांग की है। वहीं, यूकाडा (UCADA) ने दो निजी हेलिकॉप्टर राहत कार्यों के लिए तैयार रखे हैं। मौसम साफ होते ही एयरलिफ्ट और राहत वितरण की योजना है।
बिजली सप्लाई ठप, सड़कें बंद
धराली, भटवाड़ी, हर्षिल और गंगोत्री जैसे क्षेत्रों की विद्युत आपूर्ति बाधित है। मनेरी के आगे की लाइनें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। सड़कों पर भारी मलबा और टूटे पुल रेस्क्यू में मुश्किलें पैदा कर रहे हैं।
सीएम धामी का निर्देश: हरसंभव मदद करें
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आपदा की गंभीरता को देखते हुए आपातकालीन समीक्षा बैठक बुलाई है। उन्होंने बताया कि प्रभावितों की हरसंभव मदद की जाएगी, और सुरक्षित स्थानों पर राहत शिविर स्थापित किए जा रहे हैं। हर्षिल में प्रशासन ने पहला राहत शिविर बना दिया है। डीएम प्रशांत आर्य और एसपी सरिता डोवाल मौके पर पहुंच गए हैं।
क्या यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह त्रासदी सिर्फ मौसम की मार नहीं, बल्कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन और गैर-स्थायी विकास की नीति का परिणाम भी है। अनियंत्रित पर्यटन, बेतरतीब निर्माण और पर्यावरणीय चेतना की कमी ने पहाड़ों को कमजोर कर दिया है।