
पटना | बिहार की राजधानी पटना से एक बेहद अजीबोगरीब और चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने न केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि राज्य सरकार की ई-गवर्नेंस प्रणाली की विश्वसनीयता को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। मसौढ़ी अनुमंडल के अंतर्गत ‘डॉग बाबू’ नामक एक कुत्ते के नाम पर बाकायदा निवास प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया।
प्रमाण पत्र में ‘डॉग बाबू’ को मसौढ़ी का निवासी बताया गया है, और उसके माता-पिता के नाम भी ‘कुत्ता बाबू’ (पिता) और ‘कुतिया देवी’ (माता) दर्ज हैं। इतना ही नहीं, प्रमाण पत्र के ऊपरी दाहिने कोने में एक असली कुत्ते की तस्वीर भी मौजूद है। इस दस्तावेज़ ने सोशल मीडिया पर बवाल मचा दिया और राज्य की डिजिटल सेवा प्रणाली की साख पर गहरा सवालिया निशान छोड़ दिया।
प्रशासन ने दी सफाई, दो मिनट में किया रद्द
पटना के ज़िलाधिकारी त्यागराजन एस.एम. ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि यह घटना अत्यंत गंभीर है और प्रथम दृष्टया यह शरारती तत्वों द्वारा किया गया साइबर कृत्य प्रतीत होती है। उन्होंने बताया कि यह प्रमाण पत्र 24 जुलाई को दोपहर 3:56 बजे आरटीपीएस पोर्टल से जारी हुआ और केवल दो मिनट बाद ही 3:58 बजे इसे रद्द कर दिया गया।
डीएम ने यह भी स्पष्ट किया कि जैसे ही प्रमाण पत्र की असलियत का पता चला, जिला प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी। मामले की जांच साइबर थाना और अनुमंडल अधिकारी (SDO) स्तर पर चल रही है।
दोषियों पर FIR और निलंबन की तैयारी
डीएम ने बताया कि जिम्मेदार कर्मियों की पहचान की जा रही है, और उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज की जा रही है। साथ ही, संबंधित अधिकारियों को निलंबित करने की प्रक्रिया भी प्रारंभ हो चुकी है। मसौढ़ी एसडीओ को आदेश दिया गया है कि वे पूरे मामले की 24 घंटे में विस्तृत रिपोर्ट पेश करें।
प्रशासन इस बात की भी जांच कर रहा है कि क्या यह आवेदन मानवीय भूल थी, या किसी ने जानबूझकर पोर्टल की छवि खराब करने के लिए इसे डाला था।
विपक्ष का हमला और राजनीतिक बयानबाज़ी
इस मामले ने विपक्ष को भी सरकार पर हमला बोलने का मौका दे दिया। स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने इसे गंभीर लोकतांत्रिक संकट बताया। उन्होंने कहा कि यह वही निवास प्रमाण पत्र है जो भारत निर्वाचन आयोग के वोटर सत्यापन अभियान में माँगा जाता है। अगर इस तरह की गड़बड़ियाँ पोर्टल पर हो सकती हैं, तो चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता भी खतरे में पड़ सकती है।
ई-गवर्नेंस प्रणाली पर गंभीर सवाल
यह घटना बिहार सरकार के लोक सेवाओं के अधिकार पोर्टल (RTPS) की सुरक्षा, निगरानी, और मानवीय संसाधन की लापरवाही को उजागर करती है। डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस की बात करने वाले राज्य में, इस तरह की घटनाएं प्रशासनिक विश्वसनीयता पर कुठाराघात हैं। राज्य सरकार को इस मामले से सबक लेते हुए ई-सेवाओं की निगरानी प्रणाली को दुरुस्त करना होगा, ताकि भविष्य में किसी ‘डॉग बाबू’ को सरकारी मान्यता न मिले।