देहरादून। राज्य अपने स्थापना के 25वें साल में प्रवेश करने वाला है, लेकिन प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में खासकर पर्वतीय जिलों में शिक्षकों की कमी बरकरार है। विभिन्न विद्यालयों में भौतिक, रसायन विज्ञान और गणित में प्रवक्ताओं के पद खाली हैं। यह हाल तब है जब सरकार की ओर से समय-समय पर भर्ती के निर्देश जारी होते रहे हैं। वहीं, पारदर्शी तबादलों के लिए तबादला एक्ट भी बना है। प्रदेश में शिक्षकों के तबादलों में पारदर्शिता के लिए वर्ष 2017 में एक्ट बना।
तबादला एक्ट बनने के बाद यह समझा जा रहा था कि सुगम के साथ ही दुर्गम और अति दुर्गम क्षेत्र के विद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती होगी, लेकिन एक्ट में हर साल तबादलों के लिए समय सारिणी बनी होने के बावजूद पर्वतीय जिलों के विद्यालयों में शिक्षकों की कमी की समस्या दूर नहीं हुई। विभाग में कई ऐसे सिफारिशी शिक्षक हैं, जो सुविधाजनक स्कूल में एक बार तैनाती के बाद कभी पहाड़ नहीं चढ़े। प्रदेश में शिक्षकों के छह हजार से अधिक पद खाली हैं।
इसमें प्रवक्ता संवर्ग में 3699, उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापकों के 45, सहायक अध्यापकों के 500, माध्यमिक विद्यालयों में प्रधानाचार्यों के 1101, प्रधानाध्यापकों के 788 पद खाली हैं। इसके अलावा सीआरपी, बीआरपी के 955 पदों पर भी अब तक तैनाती नहीं हो पाई है। प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी की एक वजह राज्य के जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में विद्यालयों से शिक्षकों को तैनात किया जाना है। दरअसल सरकार को डायटों के लिए अलग कैडर व नियमावली बनानी थी।
डायटों के लिए कैडर व नियमावली बनने के बाद इनके लिए नए शिक्षकों की भर्ती की होनी थी, जबकि इनमें तैनात शिक्षकों को मूल तैनाती पर जाना था, लेकिन डायटों में तैनात शिक्षक न मूल तैनाती पर गए न इनमें अलग से शिक्षकों की भर्ती की जा सकी है। सरकार ने प्रदेश के 155 राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेजों का नाम और बोर्ड बदलकर वर्ष 2021 में राजकीय अटल उत्कृष्ट विद्यालय कर दिया था।
इन विद्यालयों को सीबीएसई से संबद्ध किया गया, लेकिन विभाग के तमाम प्रयासों के बाद भी खासकर पहाड़ के अटल उत्कृष्ट विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूर नहीं हो पा रही है। विभाग इसकी एक वजह पूर्व में इन विद्यालयों को लेकर हुए शासनादेश को मान रहा है। जिसमें सुगम में तैनात शिक्षकों की सेवाओं को दुर्गम सेवा के रूप में जोड़ा जा रहा है। विभागीय अधिकारियों का कहना था कि इन विद्यालयों के लिए पूर्व में हुए शासनादेश में बदलाव के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव लाया जाएगा।