देहरादून। दून अस्पताल में लेबर रूम की बजाय इमरजेंसी में गर्भवतियों के प्रसव होने के मामले सामने आए हैं। ऐसा कई गर्भवतियों के साथ हो रहा है, जिनका प्रसव इमरजेंसी में हुआ है इन सभी गर्भवतियों को आशा कार्यकर्ता अस्पताल लेकर आई थीं। आशाओं का कहना है कि गर्भवती की भर्ती फाइल बनाने में स्टाफ दो से तीन घंटे का समय लगाते हैं।
गर्भवती दर्द से तड़पती रहती है। उसे लेबर रूम तक ले जाने की नौबत ही नहीं आ पाती, प्रसव इमरजेंसी में ही हो जाता है। उत्तराखंड आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ती यूनियन सीटू की प्रांतीय अध्यक्ष शिवा दुबे ने बताया कि दून अस्पताल में लापरवाही बढ़ गई है। गर्भवती और आशा के साथ बेहतर व्यवहार नहीं होता। अस्पताल में गर्भवती को भर्ती करने के नाम पर डॉक्टर बहुत लापरवाही बरतते हैं।
खासकर रात में जब गर्भवती को ले जाओ तो सबसे पहले बिना किसी जांच के डॉक्टर कोरोनेशन के लिए रेफर कर देते हैं। इसके बाद जब इलाज को कहो तो इलाज में इतनी लापरवाही बरतते हैं जैसे मरीज की कोई फिक्र ही न हो। दर्द से तड़पती गर्भवती को लेबर रूम में ले जाना तो दूर इमरजेंसी में भर्ती की फाइल ही बनाते रहते हैं। फाइल बनाने के लिए इतना लंबा समय लेते हैं कि इमरजेंसी में प्रसव हो जाता है।
केस 1 – लक्ष्मण चौक निवासी संगीता नौ माह की गर्भवती थीं। इमरजेंसी में मौजूद स्टाफ ने संगीता को भर्ती करने से पहले कई जांच करवाईं। करीब ढाई घंटे बाद गर्भवती को भर्ती किया। ऐसे में प्रसव इमरजेंसी में ही हो गया। इनको शिवा दुबे नाम की आशा लेकर आईं थीं।
केस 2 – डालनवाला निवासी सीमा को प्रसव पीड़ा होने पर दून अस्पताल की इमरजेंसी में आई थीं। इनको चमन शर्मा नाम की आशा लेकर आईं थीं। रात का समय था और वहां पर कोई सीनियर डॉक्टर नहीं था। मौजूद स्टाफ ने भर्ती करने में तीन घंटे लगा दिए। ऐसे में इमरजेंसी में ही प्रसव हो गया।
आशाओं ने बताया कि दून अस्पताल की इमरजेंसी में गर्भवती महिला को भर्ती करवाया जाता है तो महिला की सभी जांच करवाते हैं। इसके बाद सैंपल जमा करने इमरजेंसी से ओपीडी तक आशा को भेजा जाता है। ओपीडी में तीसरी मंजिल पर सैंपल जमा करना होता है। आधी रात में चौराहा पार करके ओपीडी जाने पर आशाओं को असुरक्षित महसूस होता है। अस्पताल के स्टाफ से सैंपल नहीं भिजवाए जाते हैं।
बाउचर साइन करने के लिए भी विशेष समय निर्धारित किया गया है। निश्चित समय पर बाउचर साइन करवाने जाते हैं लेकिन कई बार स्टाफ नहीं मिलता। कभी ओपीडी कभी इमरजेंसी के चक्कर लगाते रहते हैं। आशाओं ने बताया कि गर्भवती को दून अस्पताल से कोरोनेशन अस्पताल रेेफर किया जाता है। जबकि कोरोनेशन अस्पताल जिला अस्पताल है और दून अस्पताल में गंभीर मरीजों का इलाज संभव है।
आशा कार्यकर्ताओं की दून अस्पताल के संबंध में कई बार शिकायत मिल चुकी हैं। दून अस्पताल स्वास्थ्य विभाग के तहत कार्य नहीं करता है। ऐसे में दून अस्पताल के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना से बात की गई है। हालात नहीं सुधर रहे हैं तो फिर बात की जाएगी।
-डॉ. निधि रावत, एसीएमओ एनएचएम
अस्पताल की इमरजेंसी में अगर कोई गर्भवती आ रही है तो इलाज में देरी नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा सैंपल ले जाने की जरूरत नहीं रहती। इमरजेंसी में भी सैंपल जमा कर सकते हैं। कोरोनेशन में रेफर करने वाली बात पर भी संज्ञान लेकर सभी मामलों की जांच की जाएगी।
-डॉ. अनुराग अग्रवाल, एमएस, दून अस्पताल