देहरादून। प्रदेश में 3400 निजी स्कूलों को सरकारी खजाने से सालाना 126 करोड़ का भुगतान किया जा रहा है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत कमजोर एवं वंचित वर्गाें के 87 हजार बच्चों को सरकारी खर्च पर इन स्कूलों में दाखिल कराया गया है।
खजाने पर बढ़ते बोझ से निजात पाने को उत्तराखंड सरकार लंबे समय से पंजाब पैटर्न पर निजी स्कूलों के स्थान पर सरकारी स्कूलों में ही बच्चों को दाखिला देने पर विचार कर तो रही है, लेकिन बढ़ती छात्र संख्या और अभिभावकों के रुख को देखते हुए अब तक निर्णय नहीं लिया जा सका है। शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने एक बार फिर इस लंबित मामले में विचार करने के संकेत दिए हैं।
प्रदेश में सरकारी शिक्षा के स्तर में सुधार के दावों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत निजी स्कूलों में कमजोर एवं वंचित वर्गों के बच्चों की बढ़ती संख्या मुंह चिढ़ा रही है। छात्र संख्या निरंतर गिरने से बीते 10 वर्षों में बड़ी संख्या में 10 से कम छात्र संख्या वाले राजकीय प्राथमिक स्कूलों को बंद अथवा अन्य विद्यालयों के साथ समायोजित किया जा चुका है।
दूसरी ओर, सरकारी खर्च पर निजी स्कूलों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम में निजी स्कूलों में प्रवेश का 25 प्रतिशत कोटा कमजोर व वंचित वर्गों के बच्चों के लिए तय है। केंद्र सरकार के इस अधिनियम के संबंधित प्रावधान को राज्य सरकार ने अपने अधिनियम में अंगीकार किया है।
राज्य के सामने केंद्र के रुख से भी समस्या खड़ी हुई है। निजी स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों के शुल्क एवं अन्य खर्चों की प्रतिपूर्ति केंद्र सरकार करती रही है। अब केंद्र सरकार भी इस खर्च से कदम पीछे खींच रही है। सरकार ने कुछ समय पहले शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत दिए जाने वाले दाखिलों को लेकर अन्य प्रदेशों की व्यवस्था का अध्ययन कराया था।
पंजाब सरकार इस खर्च से बचने काे शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत कमजोर एवं वंचित वर्गों के बच्चों के दाखिले सरकारी स्कूलों में ही करा रही है। शिक्षा विभाग ने पंजाब पैटर्न का भी अध्ययन किया। अब इसी पैटर्न पर उत्तराखंड सरकार एक बार फिर अपने ही स्कूलों में कमजोर एवं वंचित वर्गों के बच्चों को प्रवेश दिलाने पर विचार कर रही है।
यद्यपि, अभी तक पंजाब पैटर्न पर आगे नहीं बढ़ने के दो मुख्य कारण रहे हैं। 87 हजार बच्चों की पढ़ाई से कदम पीछे खींचने की स्थिति में अभिभावकों की नाराजगी के अंदेशे से सरकार और विभाग ठिठके रहे। सरकारी स्कूलों में दाखिला अनिवार्य करने की स्थिति में प्रदेश सरकार को अपने शिक्षा का अधिकार अधिनियम में भी संशोधन करना होगा।
कमजोर एवं वंचित वर्गों के बच्चों को अधिनियम में दी गई सुरक्षा ने भी सरकार को आगे बढ़ने से रोके रखा है। इस संबंध में शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को अधिनियम के अंतर्गत दाखिला देने पर अभी मंथन चल रहा है। हर पहलू को ध्यान में रखकर अध्ययन के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।