देहरादून। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के तहत टाइगर सफारी के नाम पर दो बाघ अभयारण्यों कालागढ़ टाइगर रिजर्व और लैंसडौन वन प्रभाग में कथित अनियमितताओं की अंतरिम जांच रिपोर्ट उत्तराखंड के प्रधान महालेखाकार ने शासन को सौंप दी है। रिपोर्ट में पूर्व की भांति अन्य जांच एजेंसियों की तरह टाइगर सफारी निर्माण के दौरान तमाम वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताएं बरतने की बात सामने आई है।
अक्तूबर 2022 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की ओर से हाईकोर्ट को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पेड़ों के अवैध कटान और निर्माण की अनुमति देने में नियमों के उल्लंघन की बात सामने आई थी। इसके बाद राज्य सरकार ने स्पेशल ऑडिट के आदेश दिए थे।
सूत्रों के अनुसार, शासन को सौंपी गई 30 पन्नों की ऑडिट रिपोर्ट में ज्यादातर बातें वहीं हैं, जो पूर्व में अन्य जांच एजेंसियां अपनी रिपोर्ट में दे चुकी हैं। ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारियों ने वैधानिक अनुमोदन और आवश्यक प्रशासनिक और वित्तीय मंजूरी प्राप्त किए बिना सीटीआर और लैंसडौन वन प्रभागों में सफारी के संबंध में निर्माण कार्य कराए और कई गैर जरूरी उपकरणों की खरीद की गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉर्बेट में सनेह से पाखरो तक 550.33 लाख रुपये की अनुमानित लागत से 18.5 किमी की एक विद्युत लाइन (11 केवी) बिछाई गई थी, जो वन संरक्षण अधिनियम के तहत बिना पूर्व मंजूरी के निविदा आमंत्रित की थी।
रिपोर्ट में उत्तराखंड खरीद नियम 2017, उत्तराखंड बजट मैनुअल नियम, राज्य पीडब्ल्यूडी नियमों और विनियमित के पालन में उल्लंघन और अनियमितताओं का भी जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में प्रभागीय वन अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच मिलीभगत का संकेत भी दिया गया है।
इस मामले में वकील और वन्यजीव कार्यकर्ता गौरव बंसल ने सीटीआर में अवैध निर्माण, पेड़ों की कटाई और संपर्क सड़कों के निर्माण के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने कहा कि ऑडिट रिपोर्ट से स्पष्ट है कि सीटीआर के भीतर बाघ संरक्षण और बाघ सफारी के नाम पर तत्कालीन मंत्री ने और वरिष्ठ अधिकारियों ने योजनाबद्ध तरीके से जनता के पैसे का बड़े पैमाने पर गबन किया है।