देहरादून। सिर पर जटा..जटाओं में गंगा.. गले में सांपों का हार और हाथ में डमरू की टनकार.. ये रूप है देवों के देव महादेव का। शिव भक्तों का महीना शुरू होने वाला है। 4 जुलाई से सावन शुरू होने वाला है। ये महीना भगवान शिव का है। इस महीने में महादेव के भक्तों का तांता शिवालयों पर लग जाता है। वैसे जब भी बात शिव के प्राचीन मंदिरों की होगी तो सबसे पहला ध्यान उत्तराखंड का आता है।
उत्तराखंड के रोम-रोम में शिव है। पुराणों में कैलाश महादेव का बसेरा था। मौजूदा समय में हिमालय की चोटियों में शिव की खोज में आज भी उनके भक्त भटकते हैं। उत्तराखंड की बात करें तो इसे ‘देवभूमि’ कहते ही हैं। यहां देवों का वास है और जो देवों के देव हैं यानी की महादेव, उनके तो सबसे प्राचीन मंदिर यहां विराजमान है। वैसे तो भगवान शिव के उत्तराखंड में कई मंदिर हैं, लेकिन इस खबर में हम उन शिव मंदिरों की बात करेंगे जो सबसे प्राचीन हैं। इन मंदिरों की अलग मान्यता है और कहते हैं यहां दर्शन करने से भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी होती है।
1- बागनाथ मंदिर
बागनाथ मंदिर उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के बागेश्वर तीर्थ स्थान में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह भगवान शिव के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह उत्तर भारत में एकमात्र प्राचीन शिव मंदिर है जो दक्षिण मुखी है। बागनाथ मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में हुआ था। जबकि मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में चंद वंश के राजा लक्ष्मी चंद ने कराया था।
इस मंदिर की महत्ता आप इस बात से समझिए कि इस जिले का नाम ही इस मंदिर के नाम पर पड़ा है। बागेश्वर जिले का नाम भी इस मंदिर के नाम पर पड़ा है। बागनाथ मंदिर के पास ही सरयू और गोमती नदी का संगम है। अब इस मंदिर को बागनाथ क्यों कहते हैं वो भी आपको बता देते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव इस जगह पर बाघ के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इसे व्याघ्रेश्वर नाम से भी जाना जाता है।
2- तुंगनाथ मंदिर
कहते हैं महादेव के दर्शन आसानी से नहीं होते। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित तुंगनाथ मंदिर। तुंगनाथ दुनिया में भगवान का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है। यह प्राचीन मंदिर पंच केदार में शामिल है।
इस मंदिर के महत्व की बात करें तो कई कहानियां प्रचलित हैं। पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर में ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने पूजा की थी और मंदिर का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि तुंगनाथ में ‘बाहु’ यानी शिव के हाथ का हिस्सा स्थापित है। ये मंदिर जितना खूबसूरत है उतना ही यहां का रास्ता कठिन है। ट्रैक करके जब आप भोलेनाथ के दर पर पहुंचेंगे तो आपकी सारी मनोकामना पूरी होगी।
3- केदारनाथ धाम
केदारनाथ से तो आप सभी परिचित होंगे। बच्चा-बच्चा भगवान शिव के इस मंदिर के बारे में जानता है। केदारनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर बर्फीली पहाड़ियों पर स्थित है। केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल है।
सर्दियों में इस मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं और उसके बाद गर्मियों में भक्त मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। हर साल देशभर से श्रद्धालु केदारनाथ मंदिर में महादेव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां का रास्ता थी कठिन है और मौजूदा समय में हर किसी का सपना एक बार केदारनाथ जाने का जरूर है।
4-त्रियुगीनारायण मंदिर
भगवान शिव का ये मंदिर अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण है। ये मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का प्रतीक है। इसका नाम है त्रियुगीनारायण मंदिर। पुराणों में वर्णित है कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में त्रियुगीनारायण शिव पार्वती विवाह स्थल मंदिर है। कहते हैं कि त्रियुगीनारायण में ही भगवान शिव और माता पार्वती ने शादी की थी। इसी पवित्रता को देखते हुए आज भी कई युवा इसी स्थान पर विवाह करने जाते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि त्रियुगीनारायण मंदिर में धूनी तीन युगों से जल रही है। यहां ब्रह्मकुंड व विष्णु कुंड भी मौजूद हैं। खास बात ये है कि इस ज्योति के दर्शन करने के लिए यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माना जाता है कि शिव-पार्वती ने इसी अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था। वैसे जब भी प्रेम की बात आती है तो भगवान शिव और माता पार्वती के त्याग और इंतजार की जिक्र जरूर होता है। कैसे महादेव ने माता सति के पुनर्जन्म का इंतजार किया और कैसे माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए सालों तपस्या की। जब इनका मिलन हुआ तो देवा से लेकर भूत-पिशाच भी इसके साक्षी बने।
5-जागेश्वर धाम
उत्तराखंड से भगवान शिव का नाता बहुत पुराना है, इसीलिए कहते है कि यहां के कण-कण में शिव हैं। इन सभी मंदिरों में पांचवें स्थान पर आता है जागेश्वर धाम। जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है।
कहा जाता है कि यह प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिव पूजन की परंपरा सर्वप्रथम शुरू हुई। यहां साल भर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है, लेकिन सावन और महाशिवरात्रि पर यहां जन सैलाब उमड़ता है। जुलाई में एक बार फिर से यहां भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए भक्तों का तांता लगेगा।