कोलकाता के पास स्थित ऐतिहासिक आचार्य जगदीश चंद्र बोस भारतीय बोटैनिकल गार्डन दुनिया के सबसे चौड़े पेड़ का घर है। यहाँ 250 साल पुराना बरगद का पेड़ है जो लगभग 330 मीटर की परिधि और चार एकड़ से अधिक में फैला है। इस विशाल वृक्ष का आकार कई जंगलों जितना बड़ा है। इसे द ग्रेट बनयन ट्री के नाम से भी जाना जाता है। यह पेड़ वास्तव में एक घने जंगल की तरह है और पेड़ों का एक उपवन प्रतीत होता है जो आपस में जुड़ते हैं।
यह महान बरगद पहली बार कब अस्तित्व में आया इसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है लेकिन कहा जाता है कि यह 250 वर्ष से अधिक पुराना है। इस पेड़ का सबसे पहला संदर्भ 19वीं शताब्दी के यात्रा लेखन में पाया जा सकता है। 1864 और 1867 में दो बड़े चक्रवातों से बचने के बाद, द ग्रेट बनयन ट्री क्षतिग्रस्त हो गया था और इसका मुख्य तना सड़ गया था। इसलिए 1925 में इसके मुख्य तने को हटाने का निर्णय लिया गया ताकि पेड़ के अन्य भाग स्वस्थ रह सकें। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, यह पेड़ अपने मुख्य तने के बिना फलता-फूलता रहता है और हर साल चौड़ा और बड़ा होता रहता है। यह तथ्य वैज्ञानिकों को भी हैरान करता है।
बरगद का पेड़ पवित्र क्यों है?
बरगद का पेड़ हिंदू संस्कृति में पवित्र माना जाता है। पवित्र हिंदू ग्रंथों में बरगद के पेड़ को देवताओं ने आश्रय के रूप में कहा गया है। इसके अलावा कई हिंदू देवी-देवताओं ने उन ग्रंथों की कहानियों में बरगद के पेड़ों का इस्तेमाल किया था। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार बरगद का वृक्ष तब त्रिमूर्ति का प्रतीक है। माना जाता है कि भगवान विष्णु पेड़ की छाल का प्रतिनिधित्व करते हैं, भगवान ब्रह्मा जड़ों में हैं और भगवान शिव शाखाओं में हैं।
इसके अलावा बौद्ध धर्म में भी यह लिखा गया है कि गौतम बुद्ध सात दिनों तक एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठे रहे थे। इसके बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यही वजह है कि बहुत से लोग बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
इस विश्व प्रसिद्ध बरगद के पेड़ को देखने के लिए हर साल हजारों पर्यटक हावड़ा में आचार्य जगदीश चंद्र बोस इंडियन बोटैनिकल गार्डन आते हैं। आप कार या बस द्वारा यहाँ आसानी से पहुँचा सकते हैं। इस बोटैनिकल गार्डन की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय सितंबर और मार्च के बीच है जब तापमान अनुकूल होता है। द ग्रेट बरगद के अलावा, इस बोटैनिकल गार्डन में दुनियाभर से एकत्रित विदेशी पौधों की कई प्रजातियों भी मौजूद हैं।