जोशीमठ। गेट वे आफ हिमालय के नाम से मशहूर जोशीमठ में लगातार बढ़ रहीं दरारें प्रशासन के लिए चुनौती बढ़ा रही हैं। जहां उनके सामने लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने, पुनर्वास की चुनौती है तो वहीं लगातार धंसते जोशीमठ को बचाने की भी समस्या है। इस पर अमर उजाला से विशेष बातचीत की चमोली के मुख्य विकास अधिकारी डॉ. ललित नारायण मिश्र ने। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश।
सवाल: आप कई दिन से यहां का दौरा कर रहे हैं। आखिर इस समस्या की जड़ कहां है?
जवाब: यहां एक वाटर सोर्स है, जिससे लगातार मॉश्चर (नमी) आ रही है। यहां टीम आई हुई है, एनआईटी, एनआईएच, आईआईटी, वाडिया से विशेषज्ञ आए हुए हैं। इसका कारण तलाशने की कोशिश कर रहे हैं।
सवाल: लेकिन जब तक ये टीम पानी के रिसाव का मूल स्रोत नहीं ढूंढ पाएगी, तब तक क्या होगा?
जवाब: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (एनआईएच) की जो टीम आई है, उनके पास अत्याधुनिक उपकरण हैं, जिससे जल्द पता चल जाएगा कि ये रिसाव कहां से हो रहा है।
सवाल: इसमें कितना समय लग जाएगा।
जवाब: सर्वे चल रहा है। उम्मीद है कि जल्द ही नतीजा मिलेगा।
सवाल: क्या यह सर्वे सिर्फ दरारों की गिनती का है?
जवाब: नहीं, यह मल्टी आस्पेक्ट का सर्वे है, जिसमें दरारों से जुड़े हर पहलू को देखा जा रहा है।
सवाल: ये तो तय है कि एक पानी का स्रोत है, जो शहर के नीचे बह रहा है। जो जगह-जगह रिसाव पैदा करने की वजह बन रहा है।
जवाब: हां, यह देखा जाता है कि दरारों का पैटर्न क्या है। नीचे मॉश्चर है या नहीं। कितने वाइब्रेट में आ रहा है।
सवाल: हम लोग जो देख रहे हैं, उससे लग रहा है कि ऊपर से लेकर नीचे तक कोई एक किमी का हारिजेंटल दायरा है, जहां ये समस्या ज्यादा विकराल है।
जवाब: हां, यह एलाइनमेंट में दिख रहा है, लेकिन अभी तो हमारा मुख्य प्रयास प्रभावितों को तत्काल पुनर्वास देने पर है।
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सवाल: लेकिन यहां तो लोग कह रहे हैं कि उन्हें रात को सोने के लिए जगह दी जाती है और सुबह को अपने घर जाने के लिए कहा जाता है।
जवाब: ऐसा नहीं है। हम उन्हें पूरी सुविधा दे रहे हैं। इसके लिए टीम बनाई गई है। खाने की भी सुविधा दी जा रही है। हम संभव प्रयास कर रहे हैं।
सवाल: लेकिन अस्थायी पुनर्वास कोई स्थायी समाधान तो नहीं है। उनकी असल मुश्किल के बारे में प्रशासन ने क्या सोचा है?
जवाब: वह ट्रीटमेंट ही होगा। हमारी विशेषज्ञ टीम उसके रास्ते तलाश रही है। उसके लिए आगे काम किया जाएगा।