ऋषिकेश के बीमाधारकों को निजी अस्पतालों से इलाज कराने की छूट देने संबंधित मामले को निदेशक को अवगत कराया गया है। यह वित्त से संबंधित मामला है। शासन से अनुमति मिलते ही आदेश जारी किए जाएंगे। जहां तक तीन साल पहले डिस्पेंसरी में कागज जमा कराने के बाद उसके दस्तावेज ऑनलाइन प्रदर्शित नहीं हो रहे हैं तो संबंधित लिपिक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
– डॉ.आकाश दीप, मुख्य चिकित्साधिकारी ईएसआईसी देहरादून
ऋषिकेश। जल्द ही ऋषिकेश के ईएसआईसी बीमाधारकों को ऋषिकेश के ही निजी अस्पतालों में उपचार की अनुमति मिलने की उम्मीद जगी है। यहां के बीमाधारकों को छोटी बीमारी के लिए भी देहरादून की दौड़ लगानी पड़ती है। शासन से अनुमति मिलते ही आदेश जारी किए जाएंगे।
ईएसआईसी (राज्य कर्मचारी बीमा निगम) के पैनल में ऋषिकेश का एक भी अस्पताल नहीं है। ऐसे में बीमाधारक को अगर आकस्मिक उपचार ऋषिकेश के प्राइवेट अस्पताल से करवाना पड़ता है तो बिल भुगतान करने के लिए ईएसआईसी प्रशासन हाथ खड़े कर देता है। ईएसआईसी की नटराज चौक स्थित डिस्पेंसरी दो-तीन बीमाधारक रोज ऐसे मामलों को लेकर पहुंच रहे हैं।
लंबे समय से बीमाधारक ऋषिकेश के निजी अस्पतालों को पैनल में लेने की मांग कर रहे हैं। ईएसआईसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने ऋषिकेश के निजी अस्पतालों में उपचार की अनुमति देने के लिए निदेशालय को प्रस्ताव भेजा है। प्रस्ताव को शासन से स्वीकृति मिलने के बाद बीमाधारकों को सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगी। वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का विधानसभा क्षेत्र भी ऋषिकेश है। ऐसे में प्रस्ताव को जल्द स्वीकृति मिलने की संभावना जताई जा रही है।
काले की ढाल निवासी संजय कुमार ने बताया कि ईएसआईसी डिस्पेंसरी में तीन साल पहले बिल जमा किए थे, लेकिन अभी तक भुगतान नहीं हुआ। यह शिकायत लेकर 15 अक्तूबर को ईएसआईसी डिस्पेंसरी आया था। उन्होंने कहा कि तीन साल पहले इलाज के कागज जमा किए थे, तब ईएसआईसी का सर्वर नहीं चल रहा था। इसलिए उस दिन कागजात ऑनलाइन जमा नहीं नहीं हो पाए। जब वह विभागीय लिपिक से पूछते हैं तो उनके कागजात ऑनलाइन जमा होने की बात कही गई। लेकिन अब तीन साल गुजर जाने के बाद न विभागीय साइट पर उन कागजों की डिटेल मिल पा रही है और न ही जमा किए कागज मूलरूप में मिल पा रहे हैं।
मेरी पत्नी को डेंगू हो गया था, उसे इलाज के लिए हरिद्वार रोड स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। पांच दिन तक उसे अस्पताल में भर्ती कराया था। अस्पताल से करीब 17 हजार का बिल बनाया गया। बिल को जमा करने के लिए ईएसआई डिस्पेंसरी लाया था। डिस्पेंसरी में बिल को प्राइवेट अस्पताल का बताकर जमा करने से इनकार दिया गया।
– संजय कुमार, काले की ढाल