उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित रूपकुंड झील वास्तव में एक ग्लेशियर है, जो लगभग 5,029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यही कारण है कि यहां पर अधिक पानी की जगह बर्फ ही नजर आती है। लेकिन जब बर्फ पिघलती है, तो झील में सैकड़ों मानव कंकाल पानी में या सतह के नीचे तैरते दिखाई देते हैं।
यह मानव कंकाल किसके हैं, इसके बारे में कुछ पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है। जब इस झील के बारे में पता चला था, तब यह माना जा रहा था कि यह अवशेष जापानी सैनिकों के थे, जो इस क्षेत्र में घुस गए थे। हालांकि, बाद में जांच के बाद यह पता चला कि यह लाशें जापानी सैनिकों की नहीं हो सकतीं, क्योंकि ये काफी पुरानी थीं। 1960 के दशक में एकत्र किए गए नमूनों से यह अनुमान लगाया गया कि वे लोग 12वीं सदी से 15वीं सदी तक के बीच के थे।
जहां एक ओर यह झील देखने में बेहद ही भयावह है, लेकिन इसका रूपकुंड नाम होना यकीनन काफी आश्चर्यचकित करता है। हालांकि, इस झील के नाम को लेकर एक मान्यता यह भी है कि इस कुंड की स्थापना भगवान् शिव ने अपनी पत्नी पार्वतीजी के लिए की। कहा जाता हैं कि जब देवी पार्वती अपने मायके से अपने ससुराल की ओर प्रस्थान कर रही थी तो तब उन्हें रास्ते में प्यास लगी और उन्होंने भगवान शिव से पानी की प्यास बुझाने के लिए कहा।
तब भगवान शिव ने माता पार्वती की प्यास बुझाने के लिए उसी जगह पर अपने त्रिशूल से एक कुंड का निर्माण किया। इसके बाद, माता पार्वती ने उस कुंड से पानी पिया। उस वक्त माता के पानी में पड़ते सुन्दर प्रतिबिम्ब को देखते हुए शिव जी द्वारा इस कुंड को रूपकुंड नाम दिया गया।