
नई दिल्ली। पाकिस्तान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी ही कूटनीतिक असहजता का उदाहरण बनता नजर आया, जब UAE के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान की हालिया पाकिस्तान यात्रा को लेकर किए गए बड़े-बड़े दावे हकीकत में खोखले साबित हुए। नेशनल मीडिया में प्रचार किया गया कि इस दौरे से पाकिस्तान को आर्थिक राहत मिलेगी, अरबों डॉलर की डील्स होंगी और कई प्रस्तावों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे, लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट सामने आई।
दौरे के दौरान ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसने पूरी दुनिया में पाकिस्तान की छवि पर सवाल खड़े कर दिए। UAE राष्ट्रपति के स्वागत में एयरपोर्ट पर टैंक तैनात किए गए, जिसे सम्मान के नाम पर शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा गया। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया में शायद ही किसी राष्ट्राध्यक्ष के स्वागत में इस प्रकार का सैन्य प्रदर्शन किया जाता हो।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि यह दौरा राजनयिक कम और निजी अधिक नजर आया। रिपोर्ट्स के अनुसार, UAE राष्ट्रपति किसी आधिकारिक द्विपक्षीय एजेंडे के बजाय पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर के एक पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे। यह शायद पहला मौका रहा जब किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को दरकिनार कर सीधे सेना प्रमुख के घर जाकर मुलाकात की।
इस दौरान राष्ट्रपति की लैंडिंग नूर खान एयरबेस पर करवाई गई, जिसे विश्लेषकों ने एक रणनीतिक संदेश के रूप में देखा। माना जा रहा है कि इसके जरिए यह दिखाने की कोशिश की गई कि भारत द्वारा पहले हुए नुकसान के बाद एयरबेस को पूरी तरह दुरुस्त कर लिया गया है।
सूत्रों के मुताबिक, UAE राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बीच बैठक महज तीन मिनट की रही, जिसे केवल शिष्टाचार भेंट माना जा रहा है। बातचीत फोटो सेशन तक सीमित रही और किसी भी एमओयू या समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए गए। इसके बावजूद प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने स्वागत में पूरा उत्साह दिखाया, लेकिन उन्हें कोई ठोस आर्थिक या कूटनीतिक सफलता हाथ नहीं लगी।
गौरतलब है कि UAE का पाकिस्तान पर करीब 2 बिलियन डॉलर का कर्ज है, जो स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान में डिपॉजिट के रूप में रखा गया है और हर साल रोलओवर होता रहता है। यह राशि पाकिस्तान के उपयोग में नहीं आती। दिसंबर 2025 में 1 बिलियन डॉलर को इक्विटी इन्वेस्टमेंट में बदलने की घोषणा जरूर हुई, लेकिन यह निवेश भी फौजी फाउंडेशन समूहों में किया गया, जिनका नियंत्रण सेना प्रमुख आसिम मुनीर के हाथ में माना जाता है।
इस पूरी घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया कि पाकिस्तान में वास्तविक सत्ता का केंद्र प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं, बल्कि सेना मुख्यालय है। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की राजनीतिक विश्वसनीयता और कूटनीतिक प्रतिष्ठा को गंभीर झटका लगा है। विश्लेषकों का मानना है कि यह दौरा पाकिस्तान के लिए लाभ से अधिक वैश्विक आलोचना और उपहास का कारण बन गया।




