
नई दिल्ली। लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ के विशेष आयोजन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में इतिहास, राष्ट्रवाद और बंगाल की बौद्धिक विरासत पर गहरी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने “बांटों और राज करो” की नीति को लागू करने के लिए बंगाल को प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल किया क्योंकि वे जानते थे कि बंगाल की चेतना, बौद्धिक शक्ति और सांस्कृतिक सामर्थ्य पूरे राष्ट्र की दिशा तय करती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बंगाल एक समय भारतीय राष्ट्रीय पुनर्जागरण का केंद्र था, और इसलिए अंग्रेजों ने सबसे पहले इसी क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 1905 में बंगाल का विभाजन कोई साधारण घटना नहीं थी, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति थी जिसका उद्देश्य था—“पहले बंगाल को तोड़ो, फिर पूरे भारत को कमजोर कर दो।” लेकिन, उनके अनुसार, अंग्रेजों की इस चाल के सामने जो शक्ति अडिग खड़ी रही, वह थी बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित “वंदे मातरम्” की अलौकिक भावना। उन्होंने कहा कि विभाजन के दर्द के बीच वंदे मातरम् पूरे बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे भारत में एक प्रेरक नाद की तरह गूंज उठा। यह गीत उस दौर में एक ऐसी चट्टान की तरह खड़ा था जिसने अंग्रेजों की विभाजनकारी नीति के विरुद्ध जनता को एकजुट किया।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वंदे मातरम् की शक्ति इतनी प्रखर थी कि अंग्रेज इस गीत से भयभीत हो गए थे। उन्होंने अत्यंत कठोर कानून लागू किए—न सिर्फ गीत गाने या छापने पर प्रतिबंध लगाया, बल्कि “वंदे मातरम्” शब्द बोलने तक पर सजा दी जाती थी। यह इस भावगीत की उस दुर्धर्ष ऊर्जा का प्रमाण था, जिसने भारतीयों में स्वतंत्रता की अलख जगाई और अंग्रेजों की नींद हराम कर दी।
उन्होंने कहा कि यह गीत इतना महान था कि 1905 में महात्मा गांधी तक इसे राष्ट्रगान स्वरूप में देखते थे। पीएम मोदी ने सवाल उठाया कि जब वंदे मातरम् इतना पवित्र, इतना प्रेरणादायी और स्वतंत्रता संग्राम का आधार था तो फिर पिछली सदी में इसे विवादों में क्यों फंसाया गया? उन्होंने पूछा कि “वह कौन-सी ताकतें थीं, जिनकी इच्छा पूज्य बापू की भावना पर भारी पड़ गई? किस दबाव में इस गीत के साथ अन्याय हुआ?”
पीएम ने कहा कि दुनिया के इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं जब कोई काव्य, कोई गीत, कोई भावनात्मक नाद, सदियों तक करोड़ों लोगों को एक ही लक्ष्य के लिए प्रेरित करता रहा हो। उन्होंने कहा कि भारत को गर्व होना चाहिए कि गुलामी के दौर में भी ऐसे महान व्यक्तित्व पैदा हुए जिन्होंने ऐसा गीत रचा, जिसने पूरे देश की आत्मा को एक सूत्र में बांध दिया।
उन्होंने बंगाल विभाजन के बाद फूटे स्वदेशी आंदोलन का भी उल्लेख किया। उनके अनुसार, वंदे मातरम् इस आंदोलन की धड़कन था—गली-गली, चौक-चौबारे में गूंजता हुआ वो स्वर जिसने अंग्रेजी सत्ता को झकझोर दिया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि बंकिम बाबू की यह रचना सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रीय अस्मिता की आत्मा है।
अपने वक्तव्य के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज जब हम वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि यह मात्र एक गीत नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष का सबसे शक्तिशाली प्रतीक है, जिसने अंग्रेजों की सबसे मजबूत दीवारों को भी कंपा दिया था। यह वह नाद है जिसने एकता, साहस, बलिदान और देशभक्ति की नई परिभाषा गढ़ी।







