
उत्तराखंड जैसे आपदा-संवेदनशील राज्य में भूकंप के प्रबंधन और बचाव क्षमता को मजबूत करने के उद्देश्य से शनिवार सुबह पूरे प्रदेश में व्यापक मॉक ड्रिल की शुरुआत की गई। राज्य के पहाड़ी इलाकों से लेकर मैदानी जिलों तक एसडीआरएफ, डीडीआरएफ, एनसीसी, होमगार्ड्स और पीआरडी के जवानों ने एक साथ अभ्यास शुरू किया, जिसमें भूकंप के दौरान संभावित परिस्थितियों का वास्तविक जैसा अनुभव देते हुए रेस्क्यू की तैयारियों का परीक्षण किया गया।
इस राज्यव्यापी अभ्यास में पहली बार डिजिटल ट्विन तकनीक को शामिल किया गया, जो किसी भवन या स्थान की डिजिटल प्रति बनाकर वास्तविक हालात जैसा वातावरण तैयार करती है। इस तकनीक की मदद से टीमें बिना किसी वास्तविक जोखिम के यह समझ सकीं कि भूकंप जैसी आपदा के समय ढांचागत नुकसान कैसा दिखेगा और किस प्रकार, किस गति से और किन संसाधनों के साथ प्रतिक्रिया देनी होगी। विशेषज्ञों के अनुसार, यह तकनीक राज्य में आपदा प्रबंधन व्यवस्था को आधुनिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
थराली, देहरादून और हरिद्वार सहित कई जिलों में सुबह दस बजे से यह अभ्यास शुरू हुआ। यहां जवानों ने बहुमंजिला आवासीय इमारतों के ढहने, अस्पतालों के आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त होने, स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों के फंसने जैसी परिस्थितियों में रेस्क्यू ऑपरेशन का अभ्यास किया। विभिन्न टीमों ने आपसी समन्वय को मजबूत करते हुए घायलों को निकालने, प्राथमिक उपचार देने और सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने की प्रक्रिया को धार दी।
राज्य सरकार के अनुसार, मॉक ड्रिल का मुख्य उद्देश्य सभी जिलों की तैयारी का व्यापक मूल्यांकन करना है—किस स्तर पर किस प्रकार की कमी है, किस संसाधन की जरूरत है और वास्तविक आपदा की स्थिति में किस प्रकार की त्वरित प्रतिक्रिया दी जा सकती है। उत्तराखंड में भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं की संवेदनशीलता को देखते हुए इस तरह की नियमित तैयारियों को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
अधिकारियों का कहना है कि इस अभ्यास से न केवल सुरक्षा बलों की दक्षता बढ़ेगी, बल्कि समुदाय स्तर पर भी जागरूकता और तैयारियों में सुधार होगा। प्रदेश की आपदा प्रतिक्रिया एजेंसियों के लिए यह मॉक ड्रिल आने वाले समय में आधुनिक और सुरक्षित आपदा प्रबंधन तंत्र विकसित करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास साबित होगी।




