
देहरादून | केंद्र सरकार ने हाल ही में पशुओं में इस्तेमाल होने वाले कुछ शक्तिशाली रोगाणुरोधी (Antimicrobial) पदार्थों और उनकी संरचनाओं को पूरी तरह प्रतिबंधित करने का आदेश जारी किया था। इसी के तहत अब उत्तराखंड पहले राज्यों में से एक बन गया है, जिसने इस निर्देश को राज्य स्तर पर लागू किया है।
उत्तराखंड के ड्रग कंट्रोलर एवं एफडीए के अपर आयुक्त ताजबर सिंह जग्गी ने बताया कि यह निर्णय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के 23 सितंबर 2025 को जारी आदेश के अनुपालन में लिया गया है। आदेश के अनुसार, इन दवाओं का आयात, निर्माण, बिक्री, वितरण और पशु चिकित्सा उपयोग अब देश में पूरी तरह अवैध होगा।
उन्होंने बताया कि इन दवाओं के इस्तेमाल से पशुओं में दवा प्रतिरोधकता (Antimicrobial Resistance) बढ़ रही थी, जिससे पशु ही नहीं, मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका जताई गई है।
क्यों लगाया गया प्रतिबंध?
विशेषज्ञों के अनुसार, पशुओं में अत्यधिक मात्रा में एंटीबायोटिक और एंटीवायरल दवाओं का उपयोग किया जा रहा था, खासकर दूध, मांस और पोल्ट्री उद्योग में। इसके चलते इन पशु उत्पादों के माध्यम से मनुष्यों में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस जीन (ARG) फैलने का खतरा बढ़ गया था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने पहले ही इस पर चिंता जताई थी कि अगर यह प्रवृत्ति नहीं रुकी, तो सामान्य संक्रमणों का इलाज भविष्य में मुश्किल हो सकता है।
इन एंटीबायोटिक दवाओं पर लगी रोक
- यूरिडोपेनिसिलिन
- सेफ्टोबिप्रोल
- सेफ्टारोलाइन
- साइडरोफोर सेफलोस्पोरिन
- कार्बापेनेम्स
- पेनेम्स
- मोनोबैक्टम्स
- ग्लाइकॉपेप्टाइड्स
- लिपोपेप्टाइड्स
- ऑक्साजोलिडिनोन्स
- फिडैक्सोमिसिन
- प्लाजोमिसिन
- ग्लाइसिलसाइक्लिन्स
- एरावासाइक्लिन
- ओमाडासाइक्लिन
इन एंटीवायरल दवाओं पर लगी रोक
- अमैंटाडाइन
- बालोक्साविर मार्बॉक्सिल
- सेल्गोसिविर
- फेविपिराविर
- गैलिडेसिविर
- लैक्टिमिडोमाइसिन
- लैनिनामिवीर
- मेथिसाजोन (मेटिसाजोन)
- मोलनुपिराविर
- निटाजोक्सानाइड
- ओसेल्टामिवीर
- पेरामिविर
- रिबाविरिन
- रिमांटाडाइन
- टिजोक्सानाइड
- ट्रायजाविरिन
- उमिफेनोविर
- जानामिवीर
संक्रमण की दवा पर प्रतिबंध
इसके अतिरिक्त, एंटी-प्रोटोज़ॉल दवा निटाजोक्सानाइड (Nitazoxanide) को भी पशुओं के उपचार में उपयोग से प्रतिबंधित किया गया है। यह दवा अक्सर परजीवी संक्रमणों के उपचार में दी जाती थी, जो अब बंद होगी।
विशेषज्ञों की राय
पशु चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम पशु स्वास्थ्य के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ऐतिहासिक है। अब राज्य में पशु चिकित्सकों को वैकल्पिक दवाओं और प्राकृतिक उपचारों की दिशा में कार्य करना होगा।
डॉ. राजीव मिश्रा, वरिष्ठ पशु चिकित्सक, ने कहा —
“यह निर्णय देर से जरूर आया है, लेकिन बेहद आवश्यक था। पशुओं को दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं का असर अब मनुष्यों में भी दिखने लगा था। इस पर नियंत्रण से भविष्य की पीढ़ियों को सुरक्षित किया जा सकेगा।”
राज्य सरकार की तैयारी
राज्य औषधि प्रशासन ने सभी जिलों के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारियों और औषधि निरीक्षकों को निर्देश दिया है कि वे इन प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री पर तत्काल रोक सुनिश्चित करें। दवा दुकानों, डेयरी फार्मों और पोल्ट्री केंद्रों पर निरीक्षण अभियान चलाया जाएगा।
उल्लंघन पाए जाने पर ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धाराओं के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी, जिसमें लाइसेंस रद्दीकरण, जुर्माना, और कैद तक का प्रावधान है।