
देहरादून। उत्तराखंड सरकार अब भूमि अभिलेखों को पूरी तरह डिजिटल स्वरूप में लाने की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ा रही है। नक्शा प्रोजेक्ट के तहत राज्य के चार नगर निकायों—अल्मोड़ा, भगवानपुर, किच्छा और नरेंद्र नगर—में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में भूमि का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है। पहले चरण में अधिकांश जगहों पर फ्लाइंग सर्वे (हवाई सर्वेक्षण) का काम पूरा हो चुका है और अब दूसरा चरण यानी ग्राउंड ट्रूथिंग (भू-सत्यापन) की तैयारी की जा रही है।
प्रशिक्षण और नई तकनीक का उपयोग
राजस्व परिषद की सचिव रंजना राजगुरु ने बताया कि इस काम के लिए भगवानपुर में राजस्व कर्मियों का प्रशिक्षण शुरू हो चुका है। करीब 10 दिन तक प्रशिक्षण सत्र चलेंगे जिसमें राजस्व टीमें न केवल तकनीकी पहलुओं को समझेंगी बल्कि फील्ड अभ्यास भी करेंगी। इसके बाद इन्हें संबंधित निकायों में भेजा जाएगा।
इसके लिए राज्य सरकार ने रोवर्स मशीनें खरीदी हैं। यह मशीनें भूमि की डिजिटल मैपिंग में उपयोग होती हैं और इनकी मदद से जमीन का सटीक सर्वेक्षण किया जा सकेगा। अधिकारियों का कहना है कि इस प्रक्रिया से रिकॉर्ड में त्रुटियों की संभावना लगभग समाप्त हो जाएगी।
फ्लाइंग सर्वे की स्थिति
अब तक अल्मोड़ा, भगवानपुर और किच्छा में फ्लाइंग सर्वे का काम पूरा किया जा चुका है। वहीं, नरेंद्र नगर में यह कार्य अभी जारी है। फ्लाइंग सर्वे के दौरान जो भी आंकड़े और नक्शे तैयार किए गए हैं, उन्हें अब जमीन पर जाकर सत्यापित किया जाएगा। यह प्रक्रिया इसलिए जरूरी है ताकि किसी भी तरह की विसंगति सामने न आए और रिकॉर्ड पूरी तरह विश्वसनीय हो।
नवंबर तक पूरा होगा सत्यापन कार्य
सरकार ने लक्ष्य तय किया है कि चारों निकायों में भू-सत्यापन का काम नवंबर तक पूरा कर लिया जाएगा। इस दौरान राजस्व टीमें न केवल जमीन की माप और सीमांकन करेंगी, बल्कि अभिलेखों के मिलान और भूस्वामियों के पक्ष को भी दर्ज करेंगी। इसके बाद ही भूमि के रिकॉर्ड को अंतिम रूप देकर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया जाएगा।
डिजिटल रिकॉर्ड के लाभ
अधिकारियों का कहना है कि डिजिटल भूमि अभिलेख तैयार होने के कई फायदे होंगे।
- भूमि संबंधी विवादों में भारी कमी आएगी।
- भूमि के स्वामित्व को लेकर पारदर्शिता बढ़ेगी।
- सरकारी योजनाओं और विकास कार्यों की योजना बनाने में आसानी होगी।
- निवेशकों और आम जनता को जमीन से जुड़ी जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सकेगी।
भविष्य की संभावनाएं
राजस्व परिषद मानती है कि यह प्रोजेक्ट राज्य के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। यदि चार निकायों में चल रहा पायलट प्रोजेक्ट सफल होता है तो भविष्य में पूरे उत्तराखंड में भूमि का रिकॉर्ड डिजिटल किया जाएगा। इससे उत्तराखंड उन चुनिंदा राज्यों की सूची में शामिल हो जाएगा जो भूमि प्रबंधन में आधुनिक तकनीक का उपयोग कर पारदर्शिता और दक्षता ला रहे हैं।