
मेरठ। जनपद में लावारिस कुत्तों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि शहर का कोई भी मोहल्ला इस समस्या से अछूता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट भी इस संबंध में आदेश दे चुका है। इसके बावजूद नगर निगम के अधिकारी गंभीर नहीं हैं। कुत्तों की नसबंदी में भी निगम की घपलेबाजी चल रही है। परतापुर स्थित एबीसीसी (एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर) पर तीन-चार दिन तक रजिस्टर में कोई भी एंट्री नहीं की जाती। बाद में गुपचुप एंट्री कर निगम से हर महीने 10 से 12 लाख तक का भुगतान करा लिया जाता है।
चार दिन तक किए गए स्टिंग ऑपरेशन में हकीकत सामने आई तो घपलेबाजी के साथ-साथ निगम की कार्यशैली की भी पोल खुल गई। एबीसीसी पर तैनात डॉक्टर का कहना है कि शहर से कुत्तों को नहीं लाया जा रहा है। इसी कारण उनकी नसबंदी नहीं हो पा रही है। जिले की हर गली में कुत्तों की संख्या बढ़ती जा रही है, किसी कुत्ते पर नसबंदी और एंटी रेबीज के इंजेक्शन लगाने का टैग तक नहीं दिखता। ऐसे में लावारिस कुत्तों पर लगाम कैसे लगेगी, यह बड़ा सवाल है।
रविवार, सोमवार, मंगलवार और बुधवार को केंद्र पर जाकर की गई पड़ताल में पाया गया कि कुत्तों की नसबंदी के रजिस्टर में कई दिन तक कोई एंट्री नहीं थी। चौथे दिन बुधवार को 10-12 कुत्तों की एंट्री दर्ज मिली।
- पहला दिन: केंद्र पर दो कर्मचारी मिले। कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। गिनती में कुत्तों की संख्या 80 मिली। नसबंदी का रजिस्टर अधूरा था।
- दूसरा दिन: नसबंदी के कोई साक्ष्य नहीं मिले। नसबंदी कक्ष में ताला लटका हुआ था। कर्मचारी जवाब देने से बचते दिखे।
- तीसरा दिन: डॉ. पीयूष शर्मा मिले। उन्होंने कहा कि महानगर से कुत्ते पकड़ कर नहीं लाए जा रहे, इसलिए नसबंदी नहीं हो पा रही। रिकॉर्ड भी अधूरा था।
- चौथा दिन: डॉ. केशव कुमार और चार कर्मचारी मौजूद थे। रजिस्टर में 15 कुत्तों की नसबंदी दर्ज मिली। डॉक्टर ने कहा कि रजिस्टर तीन-चार दिन बाद अपडेट किया जाता है।
सेंटर पर भूखे-प्यासे रहते हैं कुत्ते
जांच में सामने आया कि रोजाना कुत्ते सेंटर पर नहीं लाए जाते। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि निगम अभियान चलाकर आवारा कुत्तों को पकड़कर नसबंदी करे और फिर उन्हें वापस उसी जगह छोड़ दे। लेकिन निगम महीने में सिर्फ तीन-चार दिन ही कुत्तों को पकड़ता है। उन्हें सेंटर पर लाकर छोड़ दिया जाता है, न तो नसबंदी होती है, न इंजेक्शन लगता है और न ही उन्हें वापस छोड़ा जाता है। कई बार ये कुत्ते सेंटर में भूखे–प्यासे पड़े रहते हैं।
पहला सेंटर ठीक से नहीं, दूसरे का टेंडर
निगम का दावा है कि कुत्तों की नसबंदी, एंटी रेबीज इंजेक्शन और खाने–पीने की व्यवस्था पर हर महीने करीब 10-12 लाख रुपये खर्च होते हैं। वर्ष 2025-26 के निगम बजट में पूरे साल का दो करोड़ रुपये रखा गया है। डेढ़ लाख आवारा कुत्तों की संख्या बताकर निगम हापुड़ रोड स्थित तिरंगा गेट के पास दूसरा एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर शुरू करने की तैयारी में है। परतापुर का सेंटर ठीक से संचालित नहीं हो रहा है और दूसरा सेंटर खोलने के लिए टेंडर की प्रक्रिया जारी है।
शास्त्रीनगर, पांडवनगर, ब्रह्मपुरी, गंगानगर, टीपीनगर और माधवपुरम आदि कॉलोनियों में लोग आवारा कुत्तों के आतंक से त्रस्त हैं। जिला अस्पताल में हर रोज 120 से 150 लोग एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाने पहुंचते हैं। अब तक दर्जनों लोगों की मौत कुत्तों के हमलों से हो चुकी है।
ये बोले अधिकारी
“एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर पर निरीक्षण किया था। कई लापरवाहियां सामने आईं। डॉक्टर के वहां मौजूद न रहने की भी शिकायत मिली। शहर में कुत्तों की संख्या बहुत ज्यादा है, इसलिए दूसरा एबीसीसी सेंटर संचालित किया जाएगा। परतापुर सेंटर की जिम्मेदारी संभालने वाली कंपनी को नोटिस देकर जवाब मांगा जाएगा, इसके बाद कार्रवाई की जाएगी।”
- डॉ. अमर सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी