
देहरादून | सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों के लिए टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) को अनिवार्य किए जाने के फैसले से लाखों शिक्षक प्रभावित हो रहे हैं। कई शिक्षकों का कहना है कि यह नियम पहले से सेवा दे रहे शिक्षकों पर अन्यायपूर्ण बोझ डालेगा। इसी को लेकर अब शिक्षक संगठनों ने कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की तैयारी शुरू कर दी है।
शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। खासकर उन शिक्षकों में गहरी नाराज़गी है, जो लंबे समय से सेवा दे रहे हैं और जिनका कहना है कि अब जाकर इस परीक्षा की शर्त लगाना उचित नहीं है।
इसी मुद्दे को लेकर ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ टीचर्स ऑर्गेनाइजेशन ने निर्णायक कदम उठाने का फैसला किया है। संगठन ने घोषणा की है कि वह सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा। संगठन का मानना है कि यह आदेश लाखों शिक्षकों के भविष्य को प्रभावित करेगा और शिक्षा व्यवस्था में असंतोष फैलाएगा।
शिक्षकों का तर्क
फेडरेशन के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. सोहन माजिला ने कहा कि इस फैसले से लाखों शिक्षक सीधे प्रभावित हो रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या ऐसे शिक्षकों की है, जो बीस साल या उससे अधिक समय से सेवा में हैं।
- उनका कहना है कि टीईटी न करने वाले शिक्षकों को पदोन्नति से वंचित करना अनुचित है।
- कई शिक्षक लंबे समय से बच्चों को पढ़ा रहे हैं और उनकी क्षमता व अनुभव पहले ही साबित हो चुका है।
- ऐसे में अब जाकर टीईटी की शर्त जोड़ना उनके अधिकारों का हनन है।
आगे की रणनीति
संगठन ने साफ किया है कि वह पहले इस मुद्दे पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात कर अपनी चिंताओं से अवगत कराएगा। यदि इस स्तर पर भी समाधान नहीं निकला तो संगठन मजबूरन सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह इस फैसले को भविष्य की नियुक्तियों तक ही सीमित रखे। पहले से सेवा में चल रहे शिक्षकों को इस अनिवार्यता से मुक्त किया जाए।
पृष्ठभूमि
टीईटी (Teacher Eligibility Test) को देश में शिक्षक भर्ती और गुणवत्ता सुधार के लिए लागू किया गया था। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि शिक्षक न्यूनतम योग्यताओं पर खरे उतरें। हालांकि, पहले से सेवा में लगे शिक्षकों को लेकर इस नियम की व्याख्या और इसके दायरे पर लगातार विवाद होते रहे हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद स्थिति और जटिल हो गई है।
- एक ओर जहां सरकार और समर्थक मानते हैं कि सभी के लिए समान योग्यता मानक जरूरी है,
- वहीं शिक्षक संगठनों का कहना है कि अनुभव और सेवा अवधि को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने देशभर के शिक्षकों में बेचैनी और असमंजस पैदा कर दिया है। लाखों शिक्षकों का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि आने वाले दिनों में सरकार और न्यायपालिका किस तरह से इस विवाद का समाधान निकालते हैं। अब सबकी निगाहें शिक्षक संगठन की याचिका और कोर्ट की अगली सुनवाई पर टिकी हैं।