
देहरादून। गणेश उत्सव के समापन के साथ ही राजधानी देहरादून में नवरात्र और दशहरे की तैयारियां जोर पकड़ने लगी हैं। हर साल की तरह इस बार भी शहर के विभिन्न क्षेत्रों में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों को बनाने का काम तेजी से शुरू हो गया है। पटेलनगर और आसपास के इलाकों में कारीगर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।
असम से आया बांस, सूरत से आई वेशभूषा
पुतले बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि इस बार खास तैयारी की जा रही है। पुतलों की संरचना के लिए असम से बांस मंगाया गया है, जो आकार और मजबूती में बेहद उपयुक्त माना जाता है। हालांकि इस साल बांस की कीमत में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है, जिससे लागत भी बढ़ी है। इसके अलावा रावण के परिधान और सजावट के लिए विशेष वेशभूषा सूरत से मंगाई गई है। बताया जा रहा है कि इस बार रावण का शाही श्रृंगार पहले से कहीं अधिक भव्य होगा।
कारीगर शालू और उनकी टीम की मेहनत
पटेलनगर में पिछले 25 वर्षों से पुतले बनाने का कार्य कर रहे मुजफ्फरनगर के कारीगर शालू अपने साथियों के साथ लगातार जुटे हुए हैं। शालू ने बताया कि उन्होंने चार सितंबर से पुतलों का निर्माण शुरू कर दिया था ताकि समय पर काम पूरा हो सके। इस बार वह 25 फीट से लेकर 60 फीट ऊंचाई तक के पुतले बना रहे हैं। पुतलों की लागत आकार और सजावट के हिसाब से 25 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक आती है।
बाजार में रौनक और बढ़ती लागत
जैसे-जैसे दशहरे की तारीख नजदीक आ रही है, बाजार में भी रौनक दिखाई देने लगी है। रंगीन कागज, कपड़े, आतिशबाजी और सजावट का सामान बिकना शुरू हो चुका है। लेकिन महंगाई का असर इस बार भी साफ नजर आ रहा है। असम से आने वाले बांस की कीमत और सूरत से आने वाले परिधानों की लागत बढ़ने के कारण आयोजकों को अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ रहा है।
परंपरा और सांस्कृतिक उत्साह
दशहरा न केवल रावण दहन का पर्व है, बल्कि अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक भी है। हर साल की तरह इस बार भी देहरादून के विभिन्न मैदानों में भव्य रावण दहन का आयोजन होगा। खासकर परेड ग्राउंड में होने वाला कार्यक्रम सबसे बड़ा और लोकप्रिय माना जाता है, जहां हजारों की भीड़ उमड़ती है। कारीगरों का कहना है कि भले ही लागत बढ़ गई हो, लेकिन लोगों का उत्साह हर साल पहले जैसा ही बना रहता है। यही वजह है कि रावण दहन की परंपरा को भव्यता के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है।