
देहरादून | आपराधिक मुकदमों में गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उत्तराखंड सरकार ने एक बड़ा निर्णय लिया है। रविवार को हुई राज्य कैबिनेट बैठक में उत्तराखंड साक्षी संरक्षण अधिनियम, 2020 को रद्द करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। सरकार अब मानसून सत्र में उत्तराखंड साक्षी संरक्षण अधिनियम (निरसन) विधेयक सदन में पेश करेगी।
फिलहाल प्रदेश में लागू साक्षी संरक्षण अधिनियम, 2020 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत प्रभावी था। लेकिन पिछले वर्ष 1 जुलाई से पूरे देश में सीआरपीसी के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 (BNSS) लागू हो चुकी है।
BNSS की धारा 398 में प्रावधान
नई संहिता की धारा 398 में गवाहों की सुरक्षा को परिभाषित किया गया है और इसके तहत एक साक्षी संरक्षण योजना लागू करने का स्पष्ट प्रावधान है। इसी कारण पहले से चले आ रहे अधिनियम को समाप्त कर BNSS के अनुरूप नई योजना लागू करना आवश्यक हो गया है।
गृह विभाग की ओर से तैयार प्रस्ताव को कैबिनेट में रखा गया और चर्चा के बाद इसे मंजूरी दे दी गई।
क्यों जरूरी है नया बदलाव?
कानून विशेषज्ञों के अनुसार, साक्षी संरक्षण व्यवस्था आपराधिक न्याय प्रणाली की रीढ़ मानी जाती है। गवाहों पर दबाव, धमकी और प्रलोभन जैसे मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार ने BNSS में इसे स्पष्ट रूप से शामिल किया है।
उत्तराखंड में पहले लागू अधिनियम अलग ढांचे पर आधारित था। लेकिन अब राष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता और मजबूती लाने के लिए नई व्यवस्था लागू की जाएगी।
अगले कदम
- मानसून सत्र में अधिनियम निरसन विधेयक पेश होगा।
- इसके पारित होने के बाद राज्य में BNSS के तहत परिभाषित साक्षी संरक्षण योजना लागू होगी।
- नई योजना में गवाहों की सुरक्षा के लिए अधिक कड़े और पारदर्शी प्रावधान होंगे।