
उत्तरकाशी | उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में आई भीषण आपदा ने कई परिवारों की ज़िंदगियां बदल दीं। तेज बहाव और मलबे के सैलाब ने न केवल लोगों के घर-आंगन छीन लिए, बल्कि उनके सपने, वर्षों की मेहनत और उम्मीदें भी निगल लीं। इसी आपदा में अपना सबकुछ खो चुके होटल व्यवसायी भूपेंद्र पंवार आज भी उस भयावह दोपहर को याद कर कांप उठते हैं। उनका कहना है,
“अगर हम दो सेकंड और रुक जाते, तो शायद आज जिंदा न होते।”
सपनों का होम स्टे, जो मलबे में दब गया
अप्रैल 2025 में, चारधाम यात्रा शुरू होने से पहले, भूपेंद्र ने अपनी जीवन भर की कमाई लगाकर अपने सेब के बागानों के बीच एक सुंदर दो-मंजिला होम स्टे बनवाया था। यह उनका वर्षों पुराना सपना था। उन्होंने टैक्सी चलाकर पाई-पाई जोड़ी, उम्मीद थी कि होम स्टे से आमदनी बढ़ेगी और परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरेगी।लेकिन 5 अगस्त की दोपहर, प्रकृति के प्रकोप ने कुछ ही सेकंड में वह सपना चकनाचूर कर दिया।
प्रलय का क्षण
भूपेंद्र बताते हैं कि 5 अगस्त को वह होटल के बाहर गांव के कुछ लोगों के साथ खड़े होकर मेले में जाने की तैयारी कर रहे थे। तभी सामने मुखबा गांव से भागते लोगों की आवाजें और सीटियों की आवाज सुनाई दीं — “भागो, भागो!”उनका अनुभव कहता था कि खीरगंगा का तेज बहाव आम बात है, लेकिन इस बार पानी और मलबे का भयानक रूप देखकर वे समझ गए कि हालात गंभीर हैं। वे और चार अन्य लोग तुरंत हर्षिल की ओर दौड़े। पीछे से एक कार चालक भी तेजी से भागा।
भूपेंद्र कहते हैं,
“बस दो-तीन सेकंड का फर्क था। अगर रुक जाते, तो हम भी मलबे में कहीं दब गए होते।”
परिवार से आखिरी बात और नेटवर्क बंद
किसी तरह सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के बाद उन्होंने पत्नी और बच्चों को फोन किया। उन्होंने बताया कि वे सुरक्षित हैं, लेकिन सबकुछ खत्म हो गया है। इसके कुछ मिनट बाद ही नेटवर्क चला गया और संपर्क टूट गया।
बेघर और बेसहारा
आपदा के तीसरे दिन गांव के लोगों ने उन्हें खाना दिया। उनके कपड़े भी मलबे में दब गए थे, इसलिए पहनने के लिए टी-शर्ट और पजामा दूसरों से मांगना पड़ा।
“ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने ही गांव के लोगों पर बोझ बन गया हूं,”
भूपेंद्र भावुक होकर कहते हैं। बाद में वे पैदल मुखबा पहुंचे और वहां से हेलिकॉप्टर के जरिये उत्तरकाशी लाए गए।
रेस्क्यू ऑपरेशन में सेना और हेलिकॉप्टर तैनात
धराली और आसपास के इलाकों में बचाव और राहत कार्य तेज हो गए हैं। शुक्रवार सुबह चार यूकाडा हेलिकॉप्टरों ने मातली से हर्षिल के लिए उड़ान भरी। चिनूक, एमआई-17 और आठ निजी हेलिकॉप्टर राहत कार्य में जुटे हैं।
भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलिकॉप्टर ने गुरुवार को भारी मशीनरी हर्षिल पहुंचाई। हेलिकॉप्टरों के जरिये हर्षिल, नेलांग और मातली से 657 लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया।
आर्थिक और मानसिक आघात
भूपेंद्र जैसे कई पीड़ित अब पूरी तरह खाली हाथ हैं। उनका होम स्टे, सेब के बागान, और घर — सब मलबे में दब चुके हैं। उनकी कहानी उत्तराखंड की उन अनगिनत त्रासदी की कहानियों में से एक है, जहां लोग प्राकृतिक आपदाओं में सबकुछ गंवा देते हैं, लेकिन फिर भी जीने की कोशिश करते हैं।
विशेषज्ञ की राय
प्राकृतिक आपदा विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध निर्माण ने उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ा दी है।
“हमें नदियों के किनारे और भूस्खलन-प्रवण इलाकों में स्थायी निर्माण से बचना होगा, वरना ऐसे हादसे बढ़ेंगे,” — डॉ. संजय रावत, आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ।