
“सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार की दीमक जब शिक्षा संस्थानों तक पहुँच जाए, तो यह केवल धन का नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के विश्वास का भी गबन होता है।”
— अविनाश कुमार श्रीवास्तव, अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट
हरिद्वार | हरिद्वार के एक सरकारी विद्यालय में लंबे समय तक चले वित्तीय घोटाले का पटाक्षेप आखिरकार हो गया है। न्यायालय ने शुक्रवार को राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, ऐथल के लिपिक रहे मदन सिंह गोसाई को शासकीय धन के गबन के आरोप में पांच साल के कठोर कारावास और ₹10,000 के आर्थिक दंड से दंडित किया है।
🔎 क्या है पूरा मामला?
यह मामला वर्ष 2008 में सामने आया जब विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाचार्य को स्कूल के खातों में वित्तीय अनियमितताएं दिखीं। जांच में सामने आया कि विद्यालय के लिपिक मदन सिंह गोसाई ने कई वर्षों तक फर्जी हस्ताक्षरों के माध्यम से जीपीएफ खातों से अवैध धन निकासी की, और साथ ही छात्रों से वसूले गए सरकारी शुल्क व छात्र निधि को निजी लाभ के लिए गबन किया।
सहायक अभियोजन अधिकारी नवेंदु कुमार मिश्रा के अनुसार, आरोपी ने कई प्रधानाचार्यों के हस्ताक्षर नकली तरीके से तैयार कर, उनके भविष्य निधि खातों से पैसे निकालने की साजिश रची। इसके अलावा, छात्र-छात्राओं से एकत्रित धनराशि को स्कूल की पासबुक में जमा न कर, अपने निजी खर्चों के लिए उपयोग किया गया।
🧾 घोटाले का पर्दाफाश: कैसे हुआ खुलासा?
विद्यालय के प्रधानाचार्य ने जब खातों की गहराई से जांच की, तो उन्हें स्पष्ट रूप से कई फर्जी लेन-देन और धनराशि के गबन के प्रमाण मिले। उन्होंने तुरंत थाना पथरी में शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस ने गहन जांच कर धारा 409 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), और 467/468 (जालसाजी) समेत कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया।
पुलिस ने जांच पूरी कर अदालत में चार्जशीट दाखिल की। मुकदमे की सुनवाई के दौरान अदालत ने करीब 14 गवाहों के बयान दर्ज किए, जिनमें प्रधानाचार्य, शिक्षक, लेखाकार और तकनीकी विशेषज्ञ शामिल थे। सबूत इतने पुख्ता थे कि अदालत ने आरोपी को दोषी करार देते हुए कहा:
“यह कोई साधारण प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि सोची-समझी धोखाधड़ी है जो शिक्षा व्यवस्था की नींव को हिला सकती थी।”
⚖️ अदालत का सख्त रुख और फैसला
अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अविनाश कुमार श्रीवास्तव ने सुनवाई के दौरान कहा कि,
“शासकीय निधि में गबन केवल आर्थिक अपराध नहीं, यह जनता के विश्वास के साथ विश्वासघात है। यदि शिक्षा संस्थान, जो राष्ट्र निर्माण की बुनियाद हैं, उन्हीं में गबन होने लगे तो इसका दूरगामी प्रभाव समाज पर पड़ेगा।”
अदालत ने इस परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए आरोपी को पांच वर्ष के कठोर कारावास और ₹10,000 के अर्थदंड से दंडित किया।
🧠 सामाजिक और नैतिक संदेश
इस घटना ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि भ्रष्टाचार केवल सरकारी तंत्र को नहीं, बल्कि समाज की मूल संरचना को खोखला करता है। एक लिपिक जो विद्यालय के छात्रों के भविष्य से जुड़ा था, वही उनके लिए निर्धारित निधि का गबन करता रहा।
इस फैसले ने न केवल आरोपी को दंडित किया बल्कि पूरे शिक्षा विभाग और अन्य सरकारी कर्मचारियों के लिए एक स्पष्ट संदेश भी दिया है – कोई भी सरकारी पदाधिकारि यदि अपनी जिम्मेदारी से विमुख होकर निजी स्वार्थ साधेगा, तो कानून उसे बख्शेगा नहीं।